असगर वजाहत |
पंजाबी
कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद शायद बीस से ज्यादा ही पुराना है।
पिछले
दिनों कवि अजेय ने व्ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने
अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्ने
मिल गए। मतलब ये कंप्यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब
पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर
साहब को खत भी लिखा था, पर उनका
जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से
आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र
यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।
7
घर्र घर्र
मैं
छतरी बराबर आकाश हूं गूंजता हुआ
हवा
की सां सां का पंजाबी में अनुवाद करता
अजीबोगरीब
दरख़्त हूं
हजारों
रंग बिरंगे जुमलों से बिंधा हुआ
नन्हां
सा भीष्म पितामह हूं
मैं
आपके प्रश्नों का क्या उत्तर दूं ?
महात्मा
बुद्ध और गुरु गोविंद सिंह
परमो
धर्म अहिंसा और बेदाग चमकती तलवार की
मुलाकात
के वैन्यू के लिए मैं बहुत गलत शहर हूं
मेरे
लिए तो बीवी की गलबहियां भी कटघरा हैं
क्लासरूम
का लेक्चर स्टैंड भी
और
चौराहे की रेलिंग भी
मैं
आपके प्रश्नों का क्या उत्तर दूं ?
मुझ
में से नेहरू भी बोलता है माओ भी
कृष्ण
भी बोलता है कामू भी
वॉयस
ऑफ अमेरिका भी बीबीसी भी
मुझ
में से बहुत कुछ बोलता है
नहीं
बोलता तो बस मैं ही नहीं बोलता हूं
मैं
आठ बैंड का शक्तिशाली बुद्धिजीवी
मेरी
नसों की घर्र घर्र शायद मेरी है
मेरी
हड्डियों का ताप संताप शायद मौलिक है
वर्षों
में मेरा इतिहास बहुत लंबा है
कर्मों
में बहुत छोटा
जब
मां को खून की जरूरत थी
मैं
किताब बन गया
जब
पिता को छड़ी चाहिए थी
मैं
बिजली सा चमका और बोला :
कपिलवस्तु
के शुद्धोधन का ध्यान करो
मच्छीबाड़े
की तरफ देखो
गीता
पढ़ी है तो विचार भी करो
कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा...
ऐसा
ही बहुत कुछ जो मेरी समझ से भी परे था
रास्ते
में फरार दोस्त मिले
उन्होंने
पूछा :
हमारे
साथ सलीब तक चलेगा -
कातिलों
के कत्ल को अहिंसा समझेगा ?
गुमनाम
पेड़ पर उल्टा लटक के
मसीही
अंदाज में
सरकंडे
को भाषण देगा ?
जवाब
में मेरे अंदर
कई
तस्वीरें उलझ गईं
मैं
कई दर्शनों का कोलाज सा बन गया
और
आजकल कहता फिरता हूं :
सही
दुश्मन की तलाश करो
संसार
को जीतने वाला हर कोई औरंगजेब नहीं होता
जंगल
सूख रहे हैं
बांसुरी
पर मल्हार बजाओ
प्रेत
बंदूकों से नहीं मरते
मेरी
हर कविता प्रेतों को मारने का मंत्र है
मसलन
वह भी
जिसमें
मोहब्बत कहती है :
मैं
घटनाग्रस्त गाड़ी का अगला स्टेशन हूं
रेगिस्तान
पर बना पुल हूं
मैं
मर चुके बच्चे के तुतलाते तलवे पर
लंबी
उम्र की रेखा हूं
मैं
मरी हुई औरत की रिकॉर्ड की हुई हंसती
आवाज
हूं
अब
हम कल मिलेंगे।
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