Monday, March 19, 2018

सुरजीत पातर की कविताएं

                                                       असगर वजाहत

पंजाबी कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद शायद बीस से ज्‍यादा ही पुराना है। 

पिछले दिनों कवि अजेय ने व्‍ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्‍ने मिल गए। मतलब ये कंप्‍यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर साहब को खत भी लिखा था, पर उनका जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्‍हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि  असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।  


10
वह दिन

वह दिन जो अब कहीं मिले
मैं उसकी सफेद हंस जैसी ज़ख्‍मी देह पर
मरहम लगा दूं
पर दिन कोई घर से रूठ के गया जन तो नहीं
जो कभी कहीं दिख जाए कभी कहीं
और फिर किसी शाम
वो फटेहाल घर लौट आए
या किसी स्टेशन पर गाड़ी का इंतजार करता मिल जाए

दिन कोई घर से रूठ कर गए जन तो नहीं
दिन तो हमारे हाथों मरे हुओं के
कराहते प्रेत हैं
जिनके ज़ख्‍मों तक आप हमारे हाथ नहीं पहुंचते ।

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