Wednesday, February 24, 2010

कुनबा






बाल कटाकर शीशा देखूं

आंखों में आ पिता झांकते

बाल बढ़ा लेता हूं जब

दाढ़ी में नाना मुस्काते हैं

कमीज हो या कुर्ता पहना

पीठ से भैया जाते लगते हैं


नाक पर गुस्सा आवे

लौंग का चटख लश्कारा अम्मा का

चटनी का चटखारा दादी का

पोपले मुंह का हासा नानी का


घिस घिस कर पति पत्नी भी सिल बत्ता हो जाते हैं


वह रोती मैं हंसता हूं

मैं उसके हिस्से में सोता

वह मेरे हिस्से में जगती है


बेटी तो बरसों से तेरी चप्पल खोंस ले जाती है

बेटे की कमीज में देख मुझे

ऐ जी क्यों आज नैन मटकाती है.

यह कविता हाल में अमर उजाला में छपी है.


Friday, February 5, 2010

हिमालय में हैंड ग्लाइडिंग, नहीं पहाड़ में हिचकोले खाती जिंदगानी हरदम


हरबीर का खींचा हुआ भागसू नाथ मंदिर परिसर का यह चित्र साभार. चित्र में वल्‍लभ डोभाल कुछ पढ़ रहे हैं.

6

भागसूनाग


बहुत दूर दिखता है जल प्रपात

बहुत क्षीणकाय हो गया है जल प्रपात

बहुत ज्यादा लोगों से घिरा है जल प्रपात


फुहार इसकी आकाश में ही सूख-सूख जाती

झरती चांदी में स्नान की आदिम पुकार धरी की धरी रह जाती


भागसू के कुंड ने भी तरणताल का चोला पहन लिया है

मंदिर कसमसा रहा है

चंदा उगाही जोरों पर है

नए भवन में बिराजेंगे देवताओं के पत्थर


ल्लभ डोभाल अब तुम कहां रहते हो

नोयडा या धर्मशाला

जरा गिनो तो

छिले हुए पहाड़ की पसलियां ज्यादा हैं या

लुर-लुर फिरती टैक्सियां और ऑटो

पेड़ ज्यादा कटे या लेंटर पड़े ज्यादा

प्लास्टिक ज्यादा जमा हुआ या और भी कम हुआ पानी


बल्लभ डोभाल तुम कहोगे क्या हिसाब लगाने बैठ गए

फल फूल रहा है कारोबार

रोक कोई सकता नहीं


सुनो जी ल्लभ

मैं तो ढूंढ रहा हूं

अलग-थलग पड़ी हो

मिल जाए चट्टान कोई

बस थकान अपनी मिटा लूं

ज्यादा देर अब यहां रुका नहीं जाएगा॥

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इन छहों कविताओं में कुछ जगहों के नाम आए हैं -

हिमालय की पीर पंजाल शृंखला में साढ़े तेरह हजार फुट की उंचाई पर रोहतांग दर्रा लाहुल स्पीति को मनाली से जोड़ता है। ब्यास नदी का उद्गम यहीं से होता है। राल्हा पैदल यात्रा का एक पड़ाव है। सोलंग में स्कीइंग हाती है, वशिष्ठ में गर्म पानी के कुँड हैं, नग्गर में प्रसिद्ध रूसी चित्रकार निकोलिस रोरिक ने अपनी दुनिया बसाई है। मलाणा गांव प्रचीनतम लेकिन अब तक चला आ रहा लोकतंत्र लगभग दस हजार फुट उंचाई पर बसा है। जमलू यहां का देवता है और यहां पहुंचने का एक रास्ता चंद्रखणी दर्रा है। मणिकर्ण कभी उद्दाम रही लेकिन अब बिजली के लिए बांधों में बांधी जा रही पार्वती नदी के तट पर गर्म पानी के चश्मों का तीर्थ है। पतली कूल सैनी अशेष और स्नोवा बार्नो का इलाका है। समशी, भूंतर, औट, बजौरा कुल्लू और मंडी के बीच की जगहें हैं। ऐलोरा के कैलाश मंदिर की तरह शैल को काटकर बनाया गया मंदिर-समूह कांगड़ा घाटी में मसरूर में है। धर्मशाला में मेक्लोडगंज दलाई लामा के कारण लोकप्रिय हो गया है। और भागसूनाग में उत्तरोतर सूखता जाता एक जल प्रपात है। यहां कथाकार वल्लभ डोभाल भी डेरा डाले रहते हैं।


ये कविताएं समावर्तन के जनवरी अंक में भी पढ़ी जा सकती हैं.


Tuesday, February 2, 2010

हिमालय में हैंड ग्लाइडिंग, नहीं पहाड़ में हिचकोले खाती जिंदगानी हरदम


5

दलाईलामा का मैक्‍लोडगंज


घाटी में पुरातत्ववेता

ईसा से पहले के

बौद्ध स्तूप के अवशेष पाता है


ईसा के बहुत बाद भगाया गया

बौद्धों का राजा

एक चोटी पर शरण पाता है


यहां बहुत सारे बौद्ध हैं शरणार्थी

बाकी सारे अबौद्ध हैं निवासी और अनिवासी


जो यहां आते हैं सिर्फ सैलानी होते हैं

जो यहां रहते हैं वे दुकानें लगाते हैं ॥