Saturday, August 18, 2012

कचरा मसीन

Cow by sidharth1 सिद्धार्थ की गाय

मेरी पिराबलम बोले तो मालूम क्या है? मैं हर टैम फील करती है कि आदमी लोक की बस्‍ती में रहती है तो आदमी लोक का हेल्‍प करने का. आदमी लोक के वास्‍ते कुछ करने का. मैं एक बात बोलती है, ध्‍यान से सुन. एक रोज मैं मेरो को बोली. रोज पेपर खाती है, आज पेपरशन करेगी. पेट का अंतड़ी का रस्‍सी के माफक गांठ बंधने लगा पर मैं पेपरशन का शपथ लिया तो लिया. शाम के टैम कू अपना पड़ोसी लंगड़ा कुत्रा लोफरगिरी करके वापस आया तो पूछा, काय मौशी, कसी तू? मैं बोली, मैं आज पेपरशन करती है. धरती माता के वास्‍ते, परावरण के वास्‍ते. वो पूछा, पेपरशन बोले तो ? अरे अनशन समझता न तू? अन्‍न धान्‍य नहीं खाने का. वैसे ई पेपरशन मंझे पेपर नई खाने का. परावरण के वास्‍ते पेपर बचाने का. कूतरा हसने लगा. काय मौशी जंतर मंतर पर जाएगी, के रामलीला मैदान में बैठेगी. तेरा भी खोपड़ी उल्‍टा घूम गएला है. आज पेपरशन करती है कल को पाल्‍टी बना के लैक्‍शन लड़ेंगी क्‍या. अपनी औकात में रहने का बुड्ढी. तू तेरा काम कर, जास्‍ती भेजा लगाने का नई. तू जितना जासती पेपर खा सकती है, खा जाने का. ओ पेपरशन आदमी लोक के वास्‍ते है मंझे उनको बोलते पेपर कम बापरो पेड़ कम काटो. जानवर लोक को पेपर जासती वापरना मांगता. तू जितना जास्‍ती खा सकती है, खा डाल, पेपर-शेपर, प्‍लास्टिक-फ्लास्टिक, जितना जास्‍ती खा सकती है खा डाल. और पचा डाल. कुछ तो कचरा कम होएंगा. आदमी लोका का पाप कम होता दिखेंगा. कुतरे का बात से मेरा आंख खुल गया. कभी कभी अक्‍खा जिंदगी हम लोक कोई काम करते रहते है, पर एंड में जा के मालूम गिरता है हमने गलत जिंदगी बिता दिया. फिर सुरू से सुरू करने का टैम नई मिलता रे. मेरे को टैम से समझ में आया, मेरा काम कचरा साफ करने का है. उसके बाद से मैं कचरा मसीन बन गई ली.