जीते जी मरण
मेरा
भेजा फिर गएला है मेरे बाप। मेरे कू किधर का नईं छोड़ा ए लोग। मयैं बौह्त अकेली रह
गई रे। मेरी पुच्छल पकड़ के सुर्ग जाने की बात करते, पन मयैं किधर जाऊं ? दिल्ली के पछुआड़े के एक गांव में मेरे ऊपर ऐसा जुर्म कर डाला! मेरा नाम ले के एक भला माणुस मार डाला। कौन दरिंदा किया एह्? है कोई बोलने वाला? है कोई मुंह खोलने वाला? कि खाली पीली मजमा ई देखने का है? मैं तो बोलती तुम सब जन हत्यारे है। बोलती है मयै, सब लोग। जो हत्या कर के
भाग गए, वो भी और जो देख के चुप बैठे, वो भी। कनून की रखवाली करने वाले भी और कनून
को तोड़ने वाले भी। अपना बनाया कनून तो तोड़ा ई, इन्सानियत के कनून का भी तुम लोग
धज्जी उड़ा दिया। मेरा मुंह काला कर दिया रे तुम लोग। चले जाओ सब लोग इदर से। मेरे
कू अकेला छोड़ दो। मेरे कू रोने दो रे। काए को मयै गऊ माता बन के पैदा हुई रे। काय
कू।