चौब्ीस जून को जगदंबा प्रसाद दीक्षित 75 वर्ष के हो गए. कुछ संस्थाओं ने उनका अमृत महोत्सव मनाया. बीस जून को जलेस ने हबीब तनवीर की स्मृति में गोष्ठी की. तेरह जून को धीरेंद्र अस्थाना के उपन्यास का लोकापर्ण हुआ. इससे पहले, अप्रैल अंत या मई आरंभ में हृदयेश मयंक की पुस्तक का लोकापर्ण था.
यानी गर्मियों की छुट्टियों में घर गए तो एक लोकापर्ण था. लौटे तो एक और था. मुंबई में लोकापर्ण का बोझा एक ट्रस्ट उठाता है. शर्त यह होती है कि पहली प्रति ट्रस्टी को भेंट की जाए. मंच पर.
यह एक ईवेंट है. या इसे साहित्यिक गोष्ठी कहा जाए? ईवेंट ही कहा जाएगा. जगदंबा दीक्षित जी की हरीक जयंती जिसे मराठी में अमृत महोत्सव कहते हैं भी तो एक ईवेंट ही है. यह एक ऐसा कार्यक्रम है जहां शुभकामनाओं का तांता लग जाता है. और बालक (बूढ़े भी तो बच्चे ही होते हैं) खुश होता रहता है. तृप्त. वैसे इस ईवेंट में दीक्षित जी अच्छा बोले.
दीक्षित जी वाम में भी उग्रवाम के पक्षधर रहे हैं. आजकल उग्रवाम का घमासान मचा हुआ है. और इधर हीरक जयंती की ईवेंट चल रही है.
महानगर के सांस्कृतिक जीवन के प्याज की तरह कई छिलके हैं. उनमें से एक छिलका इस तरह के ईवेंट आयोजन का है.