Thursday, July 4, 2024

तू अगली रुत पर यकीं रखीं


 

सुरजीत पातर पंजाबी के कवि मई महीने में गुजर गए। हिंदी साहित्य संसार में अपने से थे।  कई लोगों ने उनकी कविताओं के अनुवाद किए। कुछ कविताओं का अनुवाद मैंने भी किया था। सर्जक पत्रिका के लिए। इस ब्लॉग पर वे कविताएं हैं। लिंकनीचे दिए हैं। नवनीत मासिक के संपादक विश्वनाथ सचदेव जी के अनुरोध पर एक संक्षिप्त टिप्पणी के साथ कुछ कविताएं उन्हें दीं। टिप्पणी लिखने के लिए इंटरनेट खंगाला तो पंजाबी उपन्यासकार जसविंदर सिंह का एक लेख मिला। सुमनिका ने उसका पंजाबी से अनुवाद कर दिया। वह लेख कथादेश के जुलाई अंक में छपा है। जसविंदर  जी का संपर्क सूत्र अमृतसर में सुजाता के जरिए पंजाबी कवि और संपादक अरतिंदर कौर जी से मिला। अब आप नवनीत में छपी यहटिप्पणी पढ़िए। 


तू अगली रुत पर यकीं रखीं


 एक कवि ही अगली ऋतु पर यकीन रखता है। पतझड़ आता है तो वसंत भी आता है। इतना ही बहुत है कि मेरे खून ने पेड़ को सींचा, क्या फर्क पड़ता है कि पत्तों पर मेरा नाम नहीं है। यह है एक कवि की विश्वदृष्टि। जितना वह अपनी दुनिया के लिए कर सकता है, करेगा। बदले में उसे कोई पहचान या नाम की दरकार नहीं है। मौजूदा दौर चाहे कितने भी खराब, डरावने या खतरनाक हों, वह आने वाले समय पर भरपूर विश्वास रखेगा।

 अनुभव पकी बातें मधुरता से रखने वाला कवि सुरजीत पातर 11 मई 2024 को शरीर छोड़ गया। एक बड़ा भारतीय कवि, जिसका जन्म 14 जनवरी 1945 को पंजाब के एक गांव पतड़ कलां में हुआ था, चुपचाप नींद में ही चला गया। यह यकीन से कैसे कहा जा सकता है कि वह चुपचाप गया? कवि नींद में कैसे सपने देख रहा था या जाने से पहले कितने कष्ट से गुजरा होगा, यह हमें कभी पता नहीं चलेगा। 

 सोशल मीडिया पर साहित्य प्रेमियों ने शिद्दत के साथ उसे याद किया। पातर साहब कवि तो पंजाबी भाषा के थे पर हिंदी समाज भी उन्हें अपना ही मानता था। चमन लाल की उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद की एक किताब भी है। पंजाबी में उनके प्रमुख संग्रह हैं हवा विच लिखे हरफ’, ‘बिरख अरज़ करे’, ‘हनेरे विच सुलगदी वरणमाला’, ‘लफ्ज़ां दी दरगाह’, ‘पतझड़ दी पाजेब’ औरसुरज़मीनपातर ने लोर्का की तीन त्रासदियों, गिरीश कर्नाड के नाटक नागमंडल, ब्रेख्त और पाब्लो नेरुदा की कविताओं के बड़े सृजनात्मक अनुवाद भी किए हैं। 

 सुरजीत पातर पाश के साथ के कवियों में थे। कवि कुलदीप शर्मा लिखते हैं, ‘‘मेरा उनसे नाता तब से है जब वे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में नए-नए असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त हुए थे और कैंपस के बाहर एक कमरे में रहते थे, जहां अक्सर सुखचैन, पाश, अवतार, प्रदीप बोस के साथ साहित्यिक जमावड़ा चलता रहता था। उन दिनों वह खूब लिख रहे थे।’’ 

 जसविंदर सिंह लिखते हैं, ''सुरजीत पातर का काव्य जगत एक पढ़े लिखे युवा मनुष्य के बिखरे, टूटे, अंधेरे उलझे और उदास बिंबों-प्रतिबिंबों से ओतप्रोत है जो कि आधुनिक मनुष्य का अवांछित, असंगत, भयावह और अनिवार्य अस्तित्व और नियति है। पातर ने पंजाबी शायरी में मनभावन क्रांति के रोमांस और प्रेम के रोमांस, दोनों ही मिथकों का नई अस्तित्वमूलक संवेदना के माध्यम से पूरी शिद्दत, संजीदगी, सलीके और नए बलशाली मानवीय पीड़ामय तर्कों के साथ विस्फोट किया।''

 पंजाबी कविता में एक तरफ पाश हैं, शीशम की लकड़ी की तरह मौसमों की मार को झेलने के काबिल, सख्त और तल्ख कवि; दूसरी तरफ झूमती टहनियां वाली कमनीय लताओं को आंसुओं से सींचने वाले मधुरकंठी गायक शिव बटालवी; इन दोनों छोरों के मध्य पांच नदियों की जमीन की तासीर को आधुनिक समय में पहचानने वाला, बौर भरे आम के पेड़ की तरह का संस्कृत कवि गायक सुरजीत पातर। पंजाबी कविता की मोटे तौर पर एक खासियत है मेटाफोर और बिंबों की भाषा में अपने समय को स्वर देना। सुरजीत पातर अपनी कविता में इसके साथ-साथ करुणा की भीनी फुहार भी शामिल कर लेते हैं। वह गीत, गजल और कविता तीनों में समान अधिकार से लिखते रहे हैं। एक तरह की सादगी, विचार की नवीनता और कहने का अनूठापन उनकी विशेषताएं हैं। वे अपने वक्त की नब्ज को सही तरीके से पहचानते हैं। पंजाब के आतंकवाद के दौर में उन्होंने सधे अंदाज में अपनी बात कहने की हिम्मत की। उनकी कविताओं में गीति तत्व समाया हुआ है, शायद उसी की वजह से वे आमजन में भी बेहद लोकप्रिय हैं।

सुरजीत पातर की कविता कविवर  

सुरजीत पातर की ग्यारह कविताएं  (एक पोस्ट में एक कविता है। एक कविता पढ़कर अगली पोस्ट में जाना होगा।)

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