Sunday, June 29, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड

सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
                                            छायांकन: हरबीर

  
भ्रूणहत्‍या
मैं जन्‍मा था गलियों की बालू में
मेरा हाथ था एक चौडा़ पाल
मैं एक अंधड़ था।
पेवमेंट एक पतझड़ थी
जो मेरे पैरों के नीचे ताक रही थी
आंखों और गीत या कहानी के वास्‍ते
बहुत से पैरों की पदचाप के कारण
और हवा के कारण मैं उठता हूं धूल की तरह
गली के नुक्‍कड़ पर।
मेरा जख्‍म खिलता है चैराहों पर
सभ्‍यता की पीप रिसती है
सुलगाता हूं सिगरेट शोरोगुल में
लिए चलता हूं इसकी खाली टोकरी
और गिरता हूं
पर वह है रसातल

Sunday, June 22, 2014

स्टेेट ऑफ होमलैंड

सलमान मासाल्‍हा की कविताएं 


बगीचा
स्‍मृति की पलकों से
मैंने एक बगीचा बनाया। और लगाईं
अंगूर की बेलें और आड़ू के पेड़
एक तरफ
और लटकाए घंटियों के गुच्‍छे
शहतूत के पेड़ों पर। वे
पकेंगे गर्मियों में।
मैंने रस्सियां भी बांधीं
जो नाचतीं हैं हवा के साथ।
बच्‍चे, जो आते हैं
खेलने छुपन-छुपाई
हंसेंगे
दंतविहीन पाखियों की मानिंद। फल
जैसे लड़की का चेहरा
मैं लबों तक लाया।
वो फिसल गई मेरे हाथों से

जब हम बड़े हुए,

और पंछी

उड़ गए वतन से।

और बगीचा जो रखा मैंने

अपनी पलकों के बीच

झाड़ दिए उसने पत्‍ते लफ्जों की तरह

जो आ गिरे हैं कागज पर।  

Thursday, June 19, 2014

स्‍टेट ऑफ होमलैंड



सलमान मासाल्‍हा 4 नवंबर 1953 को मगहर के गांव गलीली में जन्‍मा हिब्रू और अरबी दोनों भाषाओं में लिखने वाला ड्रूज़ (अनेक दर्शनों के मिश्रण में यकीन करने वाले) कवि है। सन् 2006 में उसने जेरुसलम में एक ऐसा बहुलतावादी मादरे-वतन बनाने की घोषणा की, यहूदी, अरब और दूसरे सभी जिसके नागरिक होंगे और इसका अंग्रेजी नाम रखा 'स्‍टेट ऑफ होमलैंड'। उसने कहा कि इसमें किसी को अतीत से चले आते कोई अधिकार नहीं मिलेंगे, बल्कि भविष्‍य के प्रति उत्‍तरदायित्‍व होंगे। यहूदीवाद और इस्‍लाम दोनों 'स्‍मृति' पर बहुत महत्‍व देते हैं, लेकिन होमलैंडर 'भूलना' चाहेंगे। उसने लिखा भी है, ''विस्‍मृति स्‍मृति की शुरुआत है''। इस नए मुल्‍क की भाषाएं हिब्रू और अरबी होंगी। यहां सरकार का मुखिया नहीं, लोगों का मुखिया होगा, जिसकी सत्‍ता सिर्फ कूडा़ इकट्ठा करने, सड़कें पक्‍की करने और स्‍कूल बनवाने तक सीमित होगी। यह देश एक बडी़ नगरपालिका की तरह होगा। राष्‍ट्रीयता की भावना व्‍यक्ति के भीतर रहेगी। यहां मीटिंग हाउस नाम का मंदिर होगा, एक बढ़िया डी जे उसका पुजारी होगा और प्रार्थनाओं का स्‍थान कविताएं ले लेंगी। धर्म यहां बिल्‍कुल निजी मामला होगा। धर्म पर आधारित राजनैतिक पार्टियों पर रो‍क होगी, बल्कि बेहतर हो अगर कोई पार्टी हो ही नहीं। बजाए इसके सार्वभौमिक मानववाद को मंच प्रदान करने वाली एकमात्र पार्टी हो। कवि पश्चिमी लोकतंत्र के खिलाफ है क्‍योंकि वो पूरब को मुआफिक नहीं आता। यहां तो ''उदारपंथियों की तानाशाही'' होगी। वो कहता है हम शांतिवादी नहीं हैं। हम अपने मुल्‍क में आजाद बने रहने के अपने अधिकार के लिए दृढ़ रहेंगे। हमारी फौज तो होगी पर हम लडा़ई नहीं लड़ेंगे। यह मुल्‍क एक ऐसी प्रबुद्ध किस्‍म की रचना होगी कि हर कोई इसका नागरिक बनना चाहेगा। एक दिन हम सारी दुनिया को, बिना एक भी गोली दागे, जीत लेंगे।         

आइए, धीरे धीरे उसकी कुद कविताएं पढी़ जाएं  

1
अंधेरे कमरे में
अंधेरे कमरे में दिखती हैं जो चीजें
वे नहीं दिखतीं रोशन कमरे में
अजनबी रोशनी जो आती है दूर से
आंगन में जा फिसलती है छाया की तरह
अंधेरे से थकी हारी। एक काला
पंछी खिड़की की मुंडेर पर
चूस रहा है शहद कोहरे में
मैं रहस्‍यों की किताब [1] से एक आशीर्वाद थामता हूं
मैं आंसुओं की घाटी [2] की कहानी खोलता हूं
जो आदमी उथले पानी में तैरा
गड्ढों से सोनमछली पकड़ता है और
उन्‍हें चोरों से बचाता है बच्‍चे के लिए
जो भीग कर आंसू की बूंद में डूब गया
अंधेरे कमरे में तुम याद करते हो
बातें जो भूल चुके थे
पराए वतनों में। अंधेरे में
जो चाहतों के साथ साथ बढ़ता है
बच्‍चे के लिए जो नहीं है, पीछे एक कमरा है
बड़े हो चुके बच्‍चे की यादों से भरा। तालाबंद
ऐसे अतीत की तरह जिसने वर्तमान कभी जाना ही नहीं
ठसाठस, एक जिंदगी की तरह
मौत की अति भी है जिसके साथ। 




[1] बुक ऑफ सीक्रेट्स, कोमार्नो के रब्‍बी यिज्‍हाक इसाक साफरिन (1806-1874) की किताब है जिसमें उन्‍होंने अपने जीवन की घटनाओं और दिव्‍य अनुभवों को दर्ज किया है। हालांकि इस पुस्‍तक का संदर्भ शायद और भी पुराना है। हाल में इस नाम से एक फिल्‍म भी बनी है।
[2] वेल (वैली) ऑफ टीयर्स, ईसाई धर्म के अनुसार मनुष्‍य के मरने पर इस संसार के दुख-दर्द यहीं रह जाते हैं और वह स्‍वर्ग चला जाता है। अपने हिसाब से हम वेल ऑफ टीयर्स को भव-सागर कह सकते हैं

ये कविताएं नया ज्ञानोदय के मई 2014 अंक में छपी हैं।