मेघ जी अपने छात्रों के साथ: बाएं से-जगदीश मिन्हास, सुमनिका सेठी, मेघ जी, नीलम मित्तू, राकेश वत्स |
जब मुझे गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में एम. फिल. में दाखिला मिला तब रमेश कुंतल मेघ वहां हिन्दी विभागाध्यक्ष थेा। धर्मशाला कालेज से एम. ए. करने के बाद अपने प्रदेश के विश्वविद्यालय शिमला नहीं गया, बल्कि अमृतसर गया। सबसे बड़ी वजह रमेश कुंतल मेघ ही थे। दूसरे, हमारे कालेज के प्राघ्यापक ओम अवस्थी धर्मशाला कालेज छोड़कर मेघ जी के पास आ गए थे। कालेज में ओम अवस्थी जी से अपार स्नेह मिला था। अमृतसर आकर मेघ जी से भी बहुत अपनापन मिला। हालांकि उनकी विद्वता का आतंक भी कम न था। उनका स्नेह आज तक मिल रहा है। मेरे पास उनकी कुछ चिट्ठियां हैं। जब बनास जन का मेघ अंक तैयार होने लगा तो वे चिट्ठियां बाहर निकलीं। मैं मुंबई में आकाशवाणी में 1983 में आ गया था। और पहली चिट्ठी 1986 की है। अभी यहां दो चिट्ठियां दे रहा हूं।
9-8-1986
डॉ.
रमेश कुंतल मेघ
प्रोफेसर
– अध्यक्ष
ए-5,
यूनिवर्सिटी कैंपस, अमृतसर – 143005
प्रियवर,
‘‘मधुमती’’ (उदयपुर) के ताजे अगस्त 1986 के अंक में
तुम्हारी नास्टेलजिक किंतु प्यारी कविता पढ़कर खुशी हुई। यूं भी अब लेखन की
समझदारी तथा साहित्यिकता के सरोकार से दिन-ब-दिन गुत्थमगुत्था होते जा रहे हैं –
जो कि अच्छा शकुन है।
यहां यूजीसी की दक्षता-व-प्रोन्नति
वाली संयोजना के अंतर्गत मई माह में दो लेक्चरर (डॉ. हरमोहन लाल सूद तथा डा. विनोद
तनेजा) रीडर हो गए हैं तथा एक रीडर प्रोफेसर हो गया है। प्रोफेसरों के बीच
चक्रमण-प्रणाली (रोटेशन सिस्टम) पहले से ही लागू थी। अत: अब डॉ. पांडेय शशि भूषण
प्रसाद श्रीवास्तव शीतांशु प्रोफेसर-और-अध्यक्ष हो गए हैं छै जून से (वे तीन वर्ष
तक अर्थात पांच जून 1989 तक इस पदभार को वजनी बनाए रखेंगे। ... जगदीश सिंह मन्हास
... आजकल सुदक्ष बेरोजगारों की कतार में खड़ा है। उधर श्री राकेश वत्स छात्रवृत्ति
छोड़कर जनवरी-फरवरी में ही चले गए। वे कहां हैं,
क्या कर रहे हैं, कैसे बसर कर रहे हैं – कुछ पता नहीं है।
संभवत: यदि तुमसे उनका पत्राचार हो तो उन्हें प्रेरित करो – शोध पूरा करने के लिए
: तथा संभव हो तो अपने आसपास कहीं कोई समुचित काम दिलवा दो।
यहां अवस्थी जी ठीक हैं। उम्र ऐसी है
हम सभी की, कि कुछ लाभों के लिए समझौतों का बीमा (LIC) भी गुपचुप करते
चलते हैं। घर में सब ठीक ठाक है।
पत्रोत्तर तो दोगे ही,
शायद।
नीलम शर्मा इसी माह अपनी थीसिस जमा कर सकेंगी, ऐसा
विश्वास है।
शुभाकांक्षी
तुम्हारा –
रमेश कुंतल मेघ (हस्ताक्षर)
पुनश्च: अप्रैल के अंत में मैं महाराष्ट्र जनवादी लेखक
संघ के अधिवेशन में शामिल होने दो दिन के लिए बंबई आया था। दूरी और व्यस्तता के
कारण तुमसे भेंट नहीं कर सका।
12/09/1988
प्रिय
अनूप,
आपका
कार्ड पत्र मिला था। जिन संस्कृतियों में ज्ञानधारा प्रवहमान नहीं होती अर्थात्
जहाँ निरंतर संवाद और अनवरत पोलेमिक्स के बजाय विद्वानों तथा कलाकारों को ईर्ष्या
और घृणा लोभ के साँप डँसते हैं वहां विचारों का इतिहास नहीं लिखा जा सकता। हिन्दी
साहित्य के आधुनिक संदर्भ ऐसे ही हैं।
आप
तो बंबई में ऐसे रमे हैं कि धर्मशाला आते-जाते होंगे किंतु सालों से अमृतसर की ओर
मुँह उठाकर कभी नहीं झाँका। एकाध बार इधर भी आ जाएँ। आपको हम कभी नहीं भूल सकेंगे।
आपकी स्थायी छाप हमारे हृदय-पटल पर रहेगी। इसे अतिशयोक्ति न मानें।
राकेश
वत्स दिल्ली में इंदिरा गांधी खुले वि. वि. में आ गए हैं। अब उन्हें मन की जगह तथा
मन का काम मिल गया है।
जगदीश
सिंह मन्हास अंडमान के गवर्नमेंट कॉलेज में लेक्चरर होकर 1986 में चले गए थे। अब
दिसंबर 1988 में शादी करवा रहे हैं। सुमनिका का काम चल रहा है।
डॉ.
अवस्थी ठीक हैं। शुभ्रा ने M.B.A. का कोर्स ले लिया है, अमित
हमीरपुर के गवर्नमेंट कॉलेज में नियुक्त हैं (अवस्थी जी की पुत्री और पुत्र)।
शेष मिलने पर।
पत्रोत्तर देंगे।
आपका
रमेश कुंतल मेघ (हस्ताक्षर)