पिछले दिनों प्रसिद्ध मलयाली कवि के सच्चिदानंदन का आधुनिक भारतीय कविता पर एक व्याख्यान सुनने का मौका मिला. मैंने उस व्याख्यान के प्रमुख बिंदु नोट करने की कोशिश की. कुछ नोट हुए, कुछ छूट गए. फिर भी इन विचार बिंदुओं पर एक सरसरी नज़र डालने से भारतीय कविता की एक तस्वीर तो उभर ही आती है. और ज्यादा न सही, कविता की प्रवृत्तियों की एक झलक तो मिल ही जाती है. यह प्रवृत्तियां सामाजिक परिवर्तनों-आंदोलनों के बरक्स चलती रही हैं. इस तरह सामाजिक परिवर्तनों और उनमें बौद्धिक हस्तक्षेप की झलक भी मिल जाती है. यहां सच्चिदानंदन की बातों को विचार बिंदुओं (बुलेट्स) की तरह ही रख रहा हूं. यह एक तरह का प्रयोग है. हो सकता है कुछ बातें अत्यधिक अमूर्त और असंबद्ध लगें. पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर वे आपस में जुड़ जाएंगी, ऐसा विश्वास है. हो सकता है मुझे ऐसा इसलिए लग रहा हो क्योंकि मैंने पूरा भाषण सुना है. पर सुधी जन अपनी अपनी समझ से इन बिंदुओं के बीच के रिक्त स्थानों को भर भी तो सकेंगे. जब हम इन विचारों की व्याख्या करने लगेंगे तो एक तो अमूर्तता कम होगी और परस्पर संबंद्ध भी बैठने लगेगा.
एक बिंदु है आधुनिकता और दूसरा है लोकतांत्रीकरण (यानी व्यापक, सामूहिक और सामाजिक दृष्टिकोण).
आधुनिकता –
- रैडिकल
- इसने रोमांटिक ईडियम को बदल दिया
- नया परिप्रेक्ष्य - शहरीकरण. ग्रामीण जीवन का अवसान. शहरों की ओर पलायन. जड़ों से अलगाव.
- गांधीवादी मूल्यों का क्षरण.
- एक नया दिक् और काल जहां मनुष्य एक सूक्ष्म प्राणी बन कर रह गया है
- असुरक्षा बोध जैसे मनुष्य किसी भंवर में फंस गया हो
- यह नई कविता मराठी कवि मर्ढेकर से आरंभ होती है
- इस पर बॉद्लेयर का प्रभाव है
- यू. अनंतमूर्ति ने एक काव्य संग्रह संकलित किया था विभाव निसर्ग. यह टैगोर सिंडरम से विद्रोह का प्रदर्शन था यानी रोमैंटिसिज्म को अलविदा.
- विश्वास, प्रकृति, जन, ईश्वर से दूरी.
- संदेह करना.
- पैट्रीसाइड यानी पितरों-पूर्वजों को मार देना यानी पूर्ववर्तियों से मुक्ति. बकौल पणिकर – पिछली पीढ़ी का नकार.
- और इस तरह भारतीय मिथकों की पुनर्व्याख्या. आधुनिक संदर्भ में जो प्रगतिशील और पारंपरिक दोनों ही तरह की रही है.
लोकतांत्रीकरण
- श्रामणिक (कर्मकार) परंपरा. ब्राह्मणिक परंपरा . जनजातीय मौखिक परंपरा
- उच्च आधुनिकता – व्यक्तिवादी. सामाजिक सरोकारों से परे. (अस्तित्ववाद)
- जनोन्मुखता का उभार
- जागरण काल. दलित आंदोलन. राष्ट्रव्यापी हड़तालें. नक्सलवाड़ी. पर्यावरण के प्रति जागरूकता की शुरुआत.
- एकध्रुवीय विश्व का प्रभाव (सोवियत संघ का विघटन)
- बाजार, बाजारवाद का उभार
- मानकीकरण
- हिंदू राष्ट्र – विविधताओं के विपरीत
- आजादी- बाजार केंद्रित – वस्तु और ब्रांड के चुनाव की आजादी
- प्रगतिशील आधुनिकतावादी रुझान
- माओवादी, गांधीवादी, लोहियावादी सभी असंतुष्ट
- अभिव्यक्ति की जटिलता
- आत्मनिरीक्षण
- सरोकार
- सबाल्टर्न (हाशिए की) कविता
दलित कविता
- कन्नड़ में बंद्यु कविता
- मराठी में दलित कविता. उत्पीड़न और दमन की अभिव्यक्ति
- नई भाषा में
- दलित महिला कविता
- पित्रसत्ताक भाषा यानी पुरुष प्रधान भाषा का सामना
- नेटिविस्ट आंदोलन
- सांस्कृतिक उपनिवेशीकरण को खत्म करना
- धर्म संस्कृति भाषा की पुनर्खोज . आदान प्रदान के लिए. प्रभुत्व जमाने के लिए नहीं .
- बहुलतावाद का उत्सव
- एकरूपता और सतहीपन से विद्रोह
- कोई फादर फिगर्स नहीं
एक और बात. सच्चिदानंदन ने यह भाषण नई मुंबई के केरली समाज केंद्र में दिया था, पूरी तैयारी के साथ. श्रोता थे मुंबई में रह रहे मलयाली. किसी हिंदी भाषी समाज में इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रम की कल्पना आसानी से नहीं की जा सकती.