Saturday, July 26, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड


सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
                                                 हंटर, टेराकोटा में 



एक यहां से

देर रात के पहरों के लिए एक कविता


यह बदलता है इतनी तेजी से,

संसार। और मेरे लिए यह

अब बेतुका। चीजें पहुंच गईं हैं

उस सिरे तक कि मैंने छोड़ दिया है

सोचना पतन के बारे में।

क्‍योंकि, बस अब, यहां से

नहीं कोई ठौर जाने को।

वैसे भी, पार्क तक के

पेड़ उखाड़ दिए गए और गायब हो गए


और ऐसे वक्‍तों में, बाहर जाना

गलि‍यों में यहां जमा होना

लोगों के साथ खतरनाक

बात है। सड़क इतनी

गीली है। और रक्‍त बह रहा

है मुख्‍य मार्ग में।

मैं उनकी गिनती करता हूं

एक यहां से है

एक वहां से

मैं उनकी गिनती करता हूं

भेडो़ं की तरह

जब तक मैं सो नहीं जाता। 

Saturday, July 19, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड


सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
             के एस कुलकर्णी की चित्रकृति



पिंजरा

उसकी हथेली पर दूसरों ने खींची

पिंजरे की रेखाएं। जहां उन्‍होंने कैद कर दी

उसकी जीवन गाथा। और अरब का बेटा, मैं

मुझे नफरत है कैद में रखे पंछी से। हर बार

जब उसने दिया मुझे अपना हाथ। मैंने मिटा दी एक रेखा।

और आजाद कर दिए पंछी।

Sunday, July 13, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड



सलमान मासाल्‍हा की कविताएं 
                                एल मुनुस्‍वामी की चित्रकृति


जाल
हर बार मैं चलता हूं उस रास्‍ते पर
जा पहुंचता है जो दूर के सहरा में
आसमान मेरे सिर पर करता है बूंदाबांदी। और मैं
बरसात की यादों से भीग जाता हूं। कोशिश करता हूं
हाथ निकाल लूं जेब से
महसूस कर सकूं बरौनियों के अवशेष
छूट गईं जो मेरे धूप के चश्‍में में,
कोई इलाज नहीं सूझता मेरे भूखे हाथ
या मेरी भूखी आंखों के वास्‍ते। कुछ नहीं मिलता मुझे जो
इस जाल से निकाले मुझे।
सबसे ज्‍यादा यह, कि मैं लौटा नहीं सकता अपना हाथ
जेब में, जो है खाली बेहाथ।
इस बीच, मुझे नहीं परवाह
क्‍या आया रास्‍ते में
जो मेरे दिमाग में सनसनाता है
एक पल नहीं लगता यह पता लगने में कि
मैं हजार साल पहले
फेंक दिया गया रास्‍ते के किनारे,
वतन के वादे की धुंधली चाहतों में लिपटा हुआ।
अगर मैं आइने में एकटक देखूं खुद को
मैं देखूंगा वहां पियक्‍कड़, नशे में धुत्‍त, क्‍या
कर डाला है मेरे हाथों ने। एक जली हुई सिगरेट
मेरे होठों में दबी हुई। और धुंआ
निकलता मेरे सारे खीसों से
खुले हुए।