Saturday, July 26, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड


सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
                                                 हंटर, टेराकोटा में 



एक यहां से

देर रात के पहरों के लिए एक कविता


यह बदलता है इतनी तेजी से,

संसार। और मेरे लिए यह

अब बेतुका। चीजें पहुंच गईं हैं

उस सिरे तक कि मैंने छोड़ दिया है

सोचना पतन के बारे में।

क्‍योंकि, बस अब, यहां से

नहीं कोई ठौर जाने को।

वैसे भी, पार्क तक के

पेड़ उखाड़ दिए गए और गायब हो गए


और ऐसे वक्‍तों में, बाहर जाना

गलि‍यों में यहां जमा होना

लोगों के साथ खतरनाक

बात है। सड़क इतनी

गीली है। और रक्‍त बह रहा

है मुख्‍य मार्ग में।

मैं उनकी गिनती करता हूं

एक यहां से है

एक वहां से

मैं उनकी गिनती करता हूं

भेडो़ं की तरह

जब तक मैं सो नहीं जाता। 

2 comments:

  1. कवि ने सहज शब्दों में असहज सामजिक विभीषिका और अमानुषिक बदलाब का चीत्कार सुनाई दे रहा है जो बड़ा हृदय विदारक है।

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