सलमान मासाल्हा की कविताएं
परितोष सेन की चित्रकृति |
वृश्चिक
मेरा जन्म वृश्चिक राशि में हुआ था
या गांव वाले ऐसा कहते थे
और उनके चेहरे पतझड़ के पत्तों सरीखे थे
जो मेरे चेहरे को छूते हुए गुजरे
और उन्होंने कहा
कि जब मैं नवंबर में जन्मा, नहीं
गिरा आसमान से कोई तारा। मैं एक अजनबी था
जो एक अतल सपने में से गुजरा।
लेकिन
सहरा की हवाओं ने मेरी मां को जना।
और जब पतझड़ चली गई और कभी न लौटी
जैसे श्यामापक्षी लोटता है अपनी झाड़ी में
मेरे कदम घूमा किए अजनबी वतनों में।
औरतें, वक्त की तरह
प्रतिबिंबित होती थीं खिड़कियों में
जैसे अनार पर्ण छोड़ता है। और मैं बदलते मौसमों की तरह
हरी यादें मेरी देह से गिरती हैं जैसे बर्फ
बादल से
और कई बरसों के दौरान मैंने यह भी सीखा
अपनी केंचुल छोड़ना
जैसे सांप फंस जाता हो कैंची और कागज के बीच।
इस तरह मेरा भाग्य नत्थी था शब्दों में
दर्द की जड़ों से कटे हुए। ज़बान
दो हिस्सों में बंटी हुई
एक, अरबी
एक, अरबी
मां की याद को जिंदा रखने के लिए
दूसरी, हिब्रू
सर्दियों की रात में प्रेम करने के वास्ते
इस तरह मेरा भाग्य नत्थी था शब्दों में दर्द की जड़ों से कटे हुए ---अपने वतन से कटा होने की पीड़ा की अभिव्यक्ति के बहुत तीख़े बिम्ब /
ReplyDeleteऔर हरी यादें मेरी देह से गिरती हैं जैसे बर्फ बादल से,-----
स्वयं को तार तार होने की या अपने अस्तित्व के विदीर्ण होने की व्यथा को ऐसे शब्द -बड़े ही ह्रदय विदारक लगते हैं।