Friday, July 4, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड

सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
                                 एल मुनुस्‍वामी की चित्रकृति




विस्‍मृति
अजनबी लोग बैठते हैं

शाम के कहवा घर में, दिन

उनकी यादों में से पहले ही उड़ चुका है

उनकी अंगुलियों में से झर गया अनजाने

कि क्‍या बचा इसके अंत में। बिना जाने

प्‍यार को। और दुकान की खिड़की से

टकराते शोर के बीच में, और

यहां वहां की बातों के बीच

और खास कर शेयरों के भाव बढ़ने की

दिसंबर में

और सोने के भाव गिरने की, मुझे याद है

विस्‍मृति का मुख्‍यद्वार [1]। यह द्वार है ऐसा कि

जहां से दिखते हैं आनंद कक्ष [2]

क्‍योंकि इतनी ज्‍यादा याद्दाश्‍त से आप

भूल जाते हैं कि आप हैं कौन।

कौन बदसूरत है कौन खूबसूरत

आप भूल जाते हैं कौन जिया आपसे

पहले तलवार के साथ

और कौन चलता है अपनी मौत की तरफ

कहवे की मेज पर

वहां आखिरकार चुस्कियों के बीच

आप यह भी पाओगे

कप की धुंधली गहराई में

कि विस्‍मृति

शुरुआत है स्‍मृति की।




[1] गेट ऑफ ऑव्‍लीबियन।
[2] चैम्‍बर्स ऑफ ज्‍वॉय।

3 comments:

  1. कविताएं बहुत अच्छी हैं पर उससे भी अच्छा‍ है स्टेबट ऑफ होमलैंड का विचार। हम स्मृतियों का बहुत सा कूड़ा ओड़े हुए हैं और इसके लिए बहुत रक्त् वहा चुके हैं पर कहते हैं ना भूलना संभव नहीं होता है।

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  2. विस्मृति का ऐसा अनूठा अर्थ और वो भी स्वछंद पंक्तियों में। बहुत बढ़िया।

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