सलमान मासाल्हा की कविताएं
एल मुनुस्वामी की चित्रकृति |
विस्मृति
अजनबी लोग बैठते हैं
शाम के कहवा घर में, दिन
उनकी यादों में से पहले ही उड़ चुका है
उनकी अंगुलियों में से झर गया अनजाने
कि क्या बचा इसके अंत में। बिना जाने
प्यार को। और दुकान की खिड़की से
टकराते शोर के बीच में, और
यहां वहां की बातों के बीच
और खास कर शेयरों के भाव बढ़ने की
दिसंबर में
और सोने के भाव गिरने की, मुझे याद है
विस्मृति का मुख्यद्वार [1]। यह द्वार है ऐसा कि
जहां से दिखते हैं आनंद कक्ष [2]
क्योंकि इतनी ज्यादा याद्दाश्त से आप
भूल जाते हैं कि आप हैं कौन।
कौन बदसूरत है कौन खूबसूरत
आप भूल जाते हैं कौन जिया आपसे
पहले तलवार के साथ
और कौन चलता है अपनी मौत की तरफ
कहवे की मेज पर
वहां आखिरकार चुस्कियों के बीच
आप यह भी पाओगे
कप की धुंधली गहराई में
कि विस्मृति
शुरुआत है स्मृति की।
कविताएं बहुत अच्छी हैं पर उससे भी अच्छा है स्टेबट ऑफ होमलैंड का विचार। हम स्मृतियों का बहुत सा कूड़ा ओड़े हुए हैं और इसके लिए बहुत रक्त् वहा चुके हैं पर कहते हैं ना भूलना संभव नहीं होता है।
ReplyDeleteShaandaar
ReplyDeleteविस्मृति का ऐसा अनूठा अर्थ और वो भी स्वछंद पंक्तियों में। बहुत बढ़िया।
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