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एक और कोशिश
गोवर्धन अंगुली पर धारा, पांचाली का चीर बढ़ा आता
मात पिता, गुरू, बंधु, सखा आशीष, ज्ञान, प्रेम मिल जाता
बुद्ध, मार्क्स, गांधी का साया सिर पर, जीवन राह दिखाता
क्यों सखी साजन, न सखी यह अति सुंदर तम-हर छाता
सिर पर धर लो तन भीग न पाता
हो जब धूप कड़ी तब छाया दे जाता
छरहरी छड़ी बने डर पास न आता
क्यों सखी साजन न सखी छाता
रेखांकन सुमनिका का और पंक्तियां अमीर खुसरो की याद में