Friday, June 25, 2010

बारिश का स्‍वागत


एक और कोशिश

गोवर्धन अंगुली पर धारा, पांचाली का चीर बढ़ा आता
मात पिता, गुरू, बंधु, सखा आशीष, ज्ञान, प्रेम मिल जाता
बुद्ध, मार्क्‍स, गांधी का साया सिर पर, जीवन राह दिखाता
क्‍यों सखी साजन, न सखी यह अति सुंदर तम-हर छाता

Thursday, June 24, 2010

बारिश का स्‍वागत

चित्र साभार


मुंबई में अंबर बरस रहा है मजे से. निचले इलाकों में पानी भी भर रहा है, आटो टेक्‍सी वाले भी एक डेढ दिन रूठे रहे. पर सारी जनता मस्‍त है. सामान्‍य स्‍थिति होती तो अब तक चिल्‍ल पौं मच गई होती. पिछले साल की कम बारिश और उसके बाद पानी की कम आपूर्ति से सब सहम गए हैं. आखिर पानी की कुछ तो वकत पड़ी. इसी ख्‍याल से यहां छाते और बारिश की बात की थी. अमीर खुसरो को याद करते हुए. गजल गो द्विजेंद्र द्विज ने उस बात को अपने अंदाज में रखा. अब देखिए बर्फ के प्रदेश लाहुल स्पिति से संजीदा युवा कवि अजेय ने यही ख्‍याल अपने अंदाज में रखा है.

सर धर लो तन भीग न पाता
कड़ी धूप में छांह दे जाता
छड़ी बने डर पास न आता
क्‍यों सखी साजन, न सखी छाता

Sunday, June 20, 2010

बारिश का स्‍वागत

भाई द्विजेंद्र द्विज ने छाते की महिमा जरा दूसरे ढंग से गाई है. जरा देखिए तो -

छरहरा छड़ डर पास न आता
ओढ़ो तो तन भीग न पाता
धूप में छाया भी दे जाता
क्यों सखी साजन? न सखी छाता

Thursday, June 17, 2010

बारिश का स्‍वागत




सिर पर धर लो तन भीग न पाता

हो जब धूप कड़ी तब छाया दे जाता

छरहरी छड़ी बने डर पास न आता

क्‍यों सखी साजन न सखी छाता


रेखांकन सुमनिका का और पंक्तियां अमीर खुसरो की याद में


Wednesday, June 2, 2010

कवि होना उतना ही कठिन है जितना एक अच्छा इन्सान होना




कवि मोहन साहिल की शिमला से करीब चालीस किलोमीटर दूर ठियोग कस्‍बे में चाय की दुकान है. पिछले दिनों कुल्‍लू में एक सेमिनार हुआ जिसमें एस आर हरनोट, अजेय, सुरेश सेन निशांत, मोहन साहिल, ईषिता गिरीश आदि की रचनाओं पर डिग्री कालेज के छात्र-छात्राओं ने परचे पढ़े. इस प्रोग्राम में छात्र ही समीक्षक थे. हिमाचल मित्र के लिए मोहन साहिल ने इसकी रिपोर्ट लिखी. इस रिपोर्ट में कवि और कविता के बारे में मोहन के विचार भी थे. लगा कि इन बातों को यहां भी रखा जाना चाहिए. यह एक ठेठ पहाड़ी कस्‍बे में छोटी सी चाय की दुकान चलाने वाले कवि के विचार हैं. कवि का पेशा बताने का मकसद यह कि आलकल ज्‍यादातर कवि बाबू किस्‍म की छोटी बड़ी नौकरियों में हैं. हिमाचल के दो और कवि अजेय और सुरेश सेन निशांत भी इधर सबका ध्‍यान खींच रहे हैं. वे भी सरकारी नौकरी में हैं. ऐसे में मोहन के विचारों को पढ़ना दिलचस्‍प है.

कवि भी एक साधारण इन्सान है जो रोजमर्रा की उन सभी बातों का सामना करता है जो बाकी सभी लोग करते हैं। मगर कवि होना उतना ही कठिन है जितना एक अच्छा इन्सान होना। कवि का एक अपना संसार है जिसमें वह अपना न्यायाधीश स्वयं है। कवि अपनी गलतियों की सजा स्वयं को देता है। दोबारा गलती न करने की कसम खाता है। कवि के मन-मस्तिष्क में एक युद्ध सदा चलता रहता है। इस युद्ध में वह कई बार घायल होता है मगर स्वयं को मरने नहीं देता। क्योंकि वह उपचार भी जानता है। बाहरी तौर पर लगता है कि एक कवि अभावों, उदासी तथा बेचैनी का शिकार है मगर यह स्थिति एक मधुमक्खी के छत्ते की तरह है जिसके भीतर लगातार शहद बन रहा है। यह शहद कविताओं के रूप में लगातार टपकता रहता है और कवि मन अपने आसपास के हर अच्छे-बुरे अनुभवों का पराग एकत्र करता रहता है। अच्छी कविता की रचना के लिए स्वयं को अच्छा बनाए रखना बड़ी चुनौती है और इसके लिए वह सब खोना पड़ सकता है जो आम व्यक्ति पाना चाहता है। दुनिया के बहाव के साथ चल पाना और सब कुछ होते रहने देना कवि को मन्जूर नहीं। कवि की पीड़ा, उसका आन्तरिक संघर्ष, समाज तथा धरती के हर जीव, निर्जीव के लिए उसकी संवेदनाएं ही उसकी पूंजी है। यह पूंजी खो न जाए यही कवि का सबसे बड़ा भय है। यह भय आज के दौर में और भी ज्यादा है क्योंकि इसी पूंजी को बचाना मुश्किल हो रहा है। अगर यह पूंजी है तो कविता स्वयं आती है। कवि एक नट की तरह है जिसका हर कदम रस्सी पर सही पड़ना चाहिए। अगर वह ऊंचाई से एक बार गिरता है तो उसके भीतर की सब कोमलताएं मर सकती हैं। कवि क्या काम करता है कहां रहता है यह सब बेमानी है। असली संसार उसके भीतर है जिसे कोई नहीं छू सकता, न नष्ट कर सकता है। इस संसार को कवि स्वयं ही चाहे तो उजाड़ ले।