Sunday, June 20, 2010

बारिश का स्‍वागत

भाई द्विजेंद्र द्विज ने छाते की महिमा जरा दूसरे ढंग से गाई है. जरा देखिए तो -

छरहरा छड़ डर पास न आता
ओढ़ो तो तन भीग न पाता
धूप में छाया भी दे जाता
क्यों सखी साजन? न सखी छाता

3 comments:

  1. ऐसा नहीं लगता कि उसी बात को आगे पीछे करके रख दिया गया है. हो सकता है लय में फर्क पड़ता हो.

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