Friday, October 28, 2011

रेगिस्तान में पानी


कुछ समय पहले अमृतसर में पंजाब नाटशाला देखने का मौका मिला.  
उत्‍तर भारत में शिमला में गेयटी थियेटर और चंडीगढ़ में टेगोर थियेटर के अलावा 
और कोई नाम ध्‍यान में नहीं आता है. अमृतसर की पंजाब नाटशाला  
अपनी तरह का नवीन नाट्यगृह है. खासियत यह है कि यह 
एक अकेले व्‍यक्ति का उद्यम है. उम्‍मीद है कि‍ 
पंजाब नाटशालाआने वाले समय में 
कलाओं का एक सुगढ़ संकुल बन जाएगी. 

हिंदी भाषी क्षेत्रों में नाटक खेलने की परंपरा एक लगभग सूखी हुई नदी की तरह है. रामलीला को छोड़ दीजिए तो नाटक कुछ ही शहरों में होते हैं. प्रायः न नाटक होते हैं, न ही लोगों में नाटक देखने की रुचि का ही विकास हुआ है. जो नाट्यकर्म होता भी है उसमें अधिकतर कलानुरागी (एमेच्‍योर) किस्‍म का होता है. नाटक नहीं हैं तो नाट्यगृह भी नहीं हैं. सरकार ने किसी जमाने में राज्‍यों की राजधानियों में कविगुरू रवींद्र के नाम पर प्रेक्षागृह बनवाए थे. लेकिन बाकी शहरों में सन्‍नाटा है. जैसे साहित्यिक किताबों की दुकानों का अकाल है. ऐसे माहौल में जब कोई अकेला व्‍यक्ति पहल करता है तो उम्‍मीद जगती है कि धीरे धीरे कला आस्‍वाद की परंपरा बनेगी. 


मंच पर नाटक का पूर्वाभ्‍यास चल रहा है
ऐसा ही एक अकेला बंदा गुरुओं की तीर्थ नगरी अमृतसर में है जिसने वहां नाटक का एक तीर्थ निर्मित कर दिया है. जतिंदर बरार ने 1998 में पंजाब नाटशाला की नींव रखी और धीरे धीरे इसे एक शानदार नाट्यगृह में बदल डाला है. पेशे से इंजीनियर श्री बरार कई साल विदेश में रहे. देश का प्रेम और नाटक का शौक उन्‍हें वापस हिंदुस्‍तान खींच लाया. अमृतसर शहर के पुतलीघर इलाके में लगी अपनी फैक्‍ट्री को शहर से बाहर ले गए और वहां एक प्रेक्षागृह बना दिया. 


बरार की इंजीनियरी आंख ने इस सभागार को तकनीकी रूप से अत्‍याधुनिक प्रेक्षागृह बना दिया है. इसका मंच घूमने वाला (रिवाल्विंग) है. हमारे देश में घूमने वाले मंच  कम ही हैं. इस तरह के मंच में दृश्‍यबंध बदलने में आसानी होती है. पार्श्‍व में दृश्‍यबंध तैयार रखा जाता है. जैसे ही एक दृश्‍य खत्‍म होता है और अंधेरा होता है तो बिजली चालित मंच घूम जाता है. पिछला हिस्‍सा आगे अगला पीछे चला जाता है. मंच आलोकित होने पर दर्शक के सामने नया दृश्‍य संसार साकार हो जाता है. आम तौर पर नाटक में अभिनेता अगल बगल से प्रवेश करते हैं, लेकिन पंजाब नाटशाला के मंच पर जरूरत पड़ने पर पात्र मंच फाड़ कर यानी नीचे से भी प्रकट हो सकता है. नाटशाला में इस सुवि‍धा को एक नया आयाम कहा जा सकता है. एक हाइड्रालिक लिफ्ट लगाई जा रही है जिसके जरिए दृश्‍यबंध उठाकर मंच तक पहुंचाया जा सकेगा. जिन नाटकों में बड़े और ज्‍यादा सेटों की जरूरत हो, उनके लिए यह लिफ्ट फायदेमेद रहेगी. दृश्‍य परिवर्तन में समय कम लगेगा और नाटकीय प्रभाव भी पड़ेगा. बरार साहब को नाटक के दौरान और भी कई तरह के चामत्‍कारिक किस्‍म के यथार्थवादी प्रभाव पैदा करने का शोक है. ऐसी व्‍यवस्‍था की गई है कि अगर नाटक में बरसात का दृश्‍य हो तो छींटे दर्शकों पर भी पड़ जाते हैं. रसोई में पंजीरी बन रही हो तो खुशबू दर्शकों को भी आ जाती है. श्री बरार इन प्रभावों का जिक्र बड़े चाव से करते हैं. उनके लिखे नाटकों में इस तरह के दृश्‍य रहते हैं. नाटक में आम तौर पर दर्शक की सुनने और देखने की इंद्रियों का प्रयोग होता है. बरार साहब अपने दर्शक को सूंघने और छूने का सुख भी देना चाहते हैं. इस तरह वे दर्शक को यथार्थ का सांगोपांग किस्‍म का अनुभव देना चाहते हैं. उन्‍होंने एक नए नाट्य प्रभाव का जिक्र भी किया जिसमें नदी या तालाब यानी पानी के होने का वास्‍तविक प्रभाव पेदा किया जा सकेगा. इतना ही नहीं सैलोरामा पर पानी में झिलमिलाती रौशनियों का प्रभाव भी आ सकता है. यथार्थवादी और ऐतिहासिक नाटकों के लिए इस तरह की सुविधाओं की जरूरत पड़ती है.  


दृश्‍यबंध से सजा मंच
 पिछले दस बारह सालों में उन्‍होंने इस प्रेक्षागृह को एक नाट्य संकुल का रूप दे दिया है. बड़े बड़े ग्रीन रूम बनाए गए हैं. वस्‍त्राभूषण का एक भंडारगृह है. बाहर से आने वाली मंडलियों के लिए अतिथिशाला है. प्रेक्षागृह भी अब वातानुकूलित हो गया है. पंजाब नाटशाला को जतिंदर बरार ने घर की तरह स्‍नेह और चाव से खड़ा किया है. लगभग हर वस्‍तु में उनकी छाप नजर आती है. इंजीनियर होने के नाते उन्‍होंने तकनीक के नए नए प्रयोग किये हैं, प्रेक्षागार के अंदर भी और बाहर भी. बरार सा‍हब नाटशाला को एक सामाजिक जिम्‍मेदारी की तरह लेते हैं. उनके खुद के लिखे नाटक सामाजिक समस्‍या प्रधान नाटक हैं. नाटक के दर्शकों में अभिरुचि जगाने के अलावा परिसर की सफाई और सजावट पर भी उनका ध्‍यान रहता है. यहां तक कि मध्‍यांतर में परोसे जाने वाले चाय नाश्‍ते की नफासत में भी उनकी छाप दिख जाती है. नाटशाला की एक और खासियत है कि हरेक प्रदर्शन के बाद राष्‍ट्रगान गाया जाता है. समय की पाबंदी यहां की एक और खासियत है. समय की यह पाबंदी तब भी बरकरार रही जब पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरेंद्र सिंह नाटक देखने आए. मुख्‍यमंत्री नाटक और परिसर से इतने प्रभावित हुए कि सारे राज्‍य को नाटक पर ल्रगने वाले मनोरंजन कर से छूट मिल गई. 


प्रकाश व्‍यवस्‍था
एक बार को ऐसा लगता है कि बरार साहब का झुकाव ऐंद्रिक यथार्थपरकता की तरफ ज्‍यादा है. लेकिन इसका अपना महत्‍व है. दर्शक को आकर्षित करने में ये तरकीबें काम आती हैं. इस तरह की ऐंद्रिक यथार्थपरकता से दर्शक के नाट्य अनुभव में भी गहनता आती है. जिस तरह हास्‍य नाटक दर्शकों को खींचते हैं. तकरीबन सभी रंगमंडलियां उसमें मिर्च मसाला भी डालती ही हैं. पंजाब नाटशाला में भी हास्‍य नाटक होते हैं. टेलिविजन के लाफ्टर चैलेंज वाले राजीव ठाकुर और भारती सिंह इसी नाटशाला से निकले हैं. अगले दौर में हम एम्‍मीद कर सकते हैं कि पंजाब नाटशाला से कुछ और नए अभिनेता, निर्देशक और नाटककार निकलेंगे.

अब यहां दूसरे शहरों की रंगमंडलियां भी नाटक करने आती हैं. कई पाकिस्‍तानी नाटकों का मंचन भी हुआ है. नाटशाला ने अपना एक दर्शक वर्ग बना लिया है. स्‍कूली बच्‍चों के लिए भी नाटक के प्रदर्शन किए जाते हैं. हमारे समाज को जतिंदर बरार जैसे कई धुनी लोगों की जरूरत है.

यह टिप्‍पणी पिछले दिनों जनसत्‍ता में भी छपी है.  पंजाब नाटशाला की और अधिक जानकारी यहां है.

कुछ और चित्र- 

भीतरी दीबारें 
सभागार में प्रवेश
बांस के दरवाजे









 
 

 

जतिंदर बरार अपने दफ्तर में

जतिंदर बरार और सुरेंद्र मोहन मेहरा के साथ









6 comments:

  1. थियेटरीय तकनीक के बारे में ज्ञानभरा विवरण।

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  2. धन्‍यवाद प्रवीण जी

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  3. नाटक बहुत कम देख पाता हूँ, सो नाटक के बारे पढ़ना बहुत सुख देता है. आभार !!

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  4. नामवर सिंह द्वितीयNovember 1, 2011 at 5:28 PM

    देखने और सुनने का आस्वाद लेने के बाद अब सूँघने और छूने का अहसास कराने वाले इस अनूठे प्रयोग की रिपोर्टिंग के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद भी. क्या ही अच्छा हो कि नाटक में गरमा-गरम जलेबियों का दृश्य आए, जलेबी की खूशबू आए और इंटरवेल में कैंटीन कांट्रेक्टर बीस फीसदी प्रीमियम पर गरमा-गरम जलेबियां बेचे. वाह भई वाह. मुँह में पानी आ गया. बस, डर है तो इस बात का कि कहीं एकाध नाटक `डेली बैली' जैसे बन गए, तो लोगों को जेब में पड़े रूमाल का उपयोग आँसू पोंछने की बजाए, बदबू रोकने के लिए करना पड़ेगा.

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  5. पंजाब नटशाला के बारे में जानकर बहुत अच्‍छा लगा। परंतु नामवर सिंह द्वीतीय जी का अद्वितीय सौंदर्यबोध उससे भी अच्‍छा लगा।

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  6. अजेय जी और कुशल कुमार जी, आपको जानकारी अच्‍छी लगी, आपका धन्‍यवाद. कुशल जी आपने सही कहा 'दुतीय' जी का सौंदर्यबोध अत्‍यंत उच्‍चकोटि का है, उस तक पहुंचना साधारण व्‍यक्ति के बूते का नहीं है.

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