धूमिल की कविता को मंच पर साकार करना आसान नहीं है। सर्वांग राजनीतिक कविताओं को नाट्य रूप देना आसान नहीं। सर्वांग राजनीतिक मैं इस दृष्टि से कह रहा हूं क्योंकि धूमिल का मुख्य स्वर राजनीति ही है। उसके साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक यथार्थ कविता में सामने आता है। कविता में छटपटाहट से ज्यादा तल्खी है। तल्खी मोहभंग की ओर ले जाती है। कविता बिंबों और सूक्ति-प्रवण भाषा से बुनी गई है। सूक्तियों की तरह की काव्य पंक्तियां धूमिल की पहचान है। ये सूक्तियां नाट्यांतरण में सशक्त संवादों का काम करती हैं। इस वजह से इसे नाटक या नुक्कड़ नाटक में तब्दील किया जा सकता है। इसका लाभ निर्देशक और अभिनेता दोनों ने उठाया है। कविता में कथा-तंतु नहीं है। कविता में कथात्मकता हो ही यह जरूरी नहीं। कथा-तंतु का न होना नाट्यांतरण के लिए चुनौती है, जिसका सामना निर्देशक ने किया है।
राजेंद्र गुप्ता अपनी रुचि की कविताओं के पाठ के लिए साहित्य समाज में जाने जाते हैं। पटकथा का पाठ भी आप करते हैं। शायद दो वर्ष पहले जब धूमिल समग्र प्रकाशित हुआ था तब मुंबई के गोरेगांव में विमोचन कार्यक्रम में राजेंद्र जी ने इस कविता का पाठ किया था। उन्होंने बताया था कि वे पिछले कई वर्ष से इस कविता का पाठ करते हैं।
राजेंद्र गुप्ता काव्य पाठ का नाट्यांतरण बखूबी करते हैं। वे कविता के भीतर घुस जाते हैं। स्थितियों, परिस्थितियों, मन:स्थितियों को वे अपने नाट्य पाठ और अभिनय से साकार करते हैं। निर्देशक ने कुछ अंशों को अभिनेता के अंतःसंवाद में बदला है। इस वजह से कविता और स्पष्ट तथा मुखर हो जाती है। थके हुए तिरंगे को केंद्र में रखकर बनाया गया दृश्य बंध, लाल रंग की प्रधानता वाली प्रकाश व्यवस्था नाटक की तासीर को और सघन बना देती है। ध्वनि प्रभावों का प्रयोग कविता के ध्वन्यार्थ को और गहरा करता है। पार्श्व संगीत के रूप में गीत, संगीत का भी प्रयोग किया गया है। मुझे कई बार एक पाठ के ऊपर दूसरे पाठ को रख देने से संप्रेषण में असुविधा प्रतीत होती है। जैसे अभिनेता कविता का पाठ संवाद की तरह कर ही रहा है। उसके पीछे कोई गीत बजने लगे तो उसके बोल ध्यान बांट लेते हैं। यदि केवल संगीत का कुशल प्रयोग हो तो वह नाट्य पाठ या कविता पाठ या संवाद की अर्थच्छायाओं को बढ़ाने में मदद करता है।
थिएटर अकैडमी और शोधावरी पत्रिका और हूबनाथ पांडे के प्रयत्नों से यह मंचन संभव हो पाया। इस नाटक की प्रस्तुतियां जगह-जगह होनी चाहिए।
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