सिर पर धर लो तन भीग न पाता
हो जब धूप कड़ी तब छाया दे जाता
छरहरी छड़ी बने डर पास न आता
क्यों सखी साजन न सखी छाता
रेखांकन सुमनिका का और पंक्तियां अमीर खुसरो की याद में
वाह...आनंद की वर्षा हो गयी...पढ़ कर...नीरज
धन्यवाद मित्रो, इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए. पर कहीं कुछ खम बाकी है. इन्हें बार बार पढ़ा, सुधारा, उसके बाद ही यहां टांका, पर अभी भी वो मजा नहीं आ रहा. अगर कोई इसे दुबारा लिखने की कोशिश करे तो कितना मजा आए!
भाई साहबबहुत खूबएक कोशिश की है."छरहरा छड़ डर पास न आताओढ़ो तो तन भीग न पाताधूप में छाया भी दे जाताक्यों सखी साजन? न सखी छाता"
zinda chitra. dwij bhai, main gustakhi karoon? sar dhar lo tan bheeg n patakadee dhoop me chhanh de jatachadee bane dar pas n aata kyon sakhi sajan, n sakhi chhata.
Girdhar ki kundliyon ki yaad aa gayi. sunder prayas.
धन्यवाद, आर के आप पधारे.
वाह...आनंद की वर्षा हो गयी...पढ़ कर...
ReplyDeleteनीरज
धन्यवाद मित्रो, इन पंक्तियों को पसंद करने के लिए. पर कहीं कुछ खम बाकी है. इन्हें बार बार पढ़ा, सुधारा, उसके बाद ही यहां टांका, पर अभी भी वो मजा नहीं आ रहा. अगर कोई इसे दुबारा लिखने की कोशिश करे तो कितना मजा आए!
ReplyDeleteभाई साहब
ReplyDeleteबहुत खूब
एक कोशिश की है.
"छरहरा छड़ डर पास न आता
ओढ़ो तो तन भीग न पाता
धूप में छाया भी दे जाता
क्यों सखी साजन? न सखी छाता"
zinda chitra.
ReplyDeletedwij bhai, main gustakhi karoon?
sar dhar lo tan bheeg n pata
kadee dhoop me chhanh de jata
chadee bane dar pas n aata
kyon sakhi sajan, n sakhi chhata.
Girdhar ki kundliyon ki yaad aa gayi. sunder prayas.
ReplyDeleteधन्यवाद, आर के आप पधारे.
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