Sunday, July 13, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड



सलमान मासाल्‍हा की कविताएं 
                                एल मुनुस्‍वामी की चित्रकृति


जाल
हर बार मैं चलता हूं उस रास्‍ते पर
जा पहुंचता है जो दूर के सहरा में
आसमान मेरे सिर पर करता है बूंदाबांदी। और मैं
बरसात की यादों से भीग जाता हूं। कोशिश करता हूं
हाथ निकाल लूं जेब से
महसूस कर सकूं बरौनियों के अवशेष
छूट गईं जो मेरे धूप के चश्‍में में,
कोई इलाज नहीं सूझता मेरे भूखे हाथ
या मेरी भूखी आंखों के वास्‍ते। कुछ नहीं मिलता मुझे जो
इस जाल से निकाले मुझे।
सबसे ज्‍यादा यह, कि मैं लौटा नहीं सकता अपना हाथ
जेब में, जो है खाली बेहाथ।
इस बीच, मुझे नहीं परवाह
क्‍या आया रास्‍ते में
जो मेरे दिमाग में सनसनाता है
एक पल नहीं लगता यह पता लगने में कि
मैं हजार साल पहले
फेंक दिया गया रास्‍ते के किनारे,
वतन के वादे की धुंधली चाहतों में लिपटा हुआ।
अगर मैं आइने में एकटक देखूं खुद को
मैं देखूंगा वहां पियक्‍कड़, नशे में धुत्‍त, क्‍या
कर डाला है मेरे हाथों ने। एक जली हुई सिगरेट
मेरे होठों में दबी हुई। और धुंआ
निकलता मेरे सारे खीसों से
खुले हुए।

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