मैं पहली पंक्ति लिखता हूं
और डर जाता हूं राजा के सिपाहियों से
पंक्ति को काट देता हूं
मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूं
और डर जाता हूं गुरिल्ला बागियों से
पंक्ति को काट देता हूं
मैंने अपनी जान की खातिर
अपनी हजारों पंक्तियों की
इस तरह हत्या की है
उन पंक्तियों की रूहें
अक्सर मेरे चारों ओर मंडराती रहती हैं
और मुझसे कहती हैं : कविवर !
कवि हो या कविता के हत्यारे
सुना था इंसाफ करने वाले हुए कई इंसाफ के हत्यारे
धर्म के रखवाले भी सुना था कई हुए
खुद धर्म की पावन आत्मा की
हत्या करने वाले
सिर्फ यही सुनना बाकी था
और यह भी सुन लिया
कि हमारे वक्त में खौफ के मारे
कवि भी हो गए
कविता के हत्यारे.
वाह !! बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteपीडा का सार्थक vivechan....
कविता को किसी भी सदर्भ से पकड नहीं पा रहा हूं|खास तौर पर ये पंक्तियां-
ReplyDeleteमैं दूसरी पंक्ति लिखता हूं
और डर जाता हूं गुरिल्ला बागियों से
पंक्ति को काट देता हूं
अनूप जी, कविता पढ़कर इच्छा हुई, आपके नाटक पढ़ने की। कैसे, कहां मिल सकते हैं?
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता है
ReplyDeleteवाह अनूप जी,
ReplyDeleteबहुत अर्से बाद एक बढ़िया कविता !
एक झकझोर देने वाली और बड़ी..प्रासंगिक कविता..पढ़ कर ब्रेख़्त की याद आ गई..बधाई
ReplyDeleteप्रिय मित्रो,
ReplyDeleteस्वागत और धन्यवाद.
यह कविता पंजाबी के प्रसिद्घ कवि सुरजीत पातर की है. मैंने सिर्फ अनुवाद किया है.
विजय भाई, पंजाबी कविता की अपनी सीमित जानकारी के मुताबिक कह सकता हूं कि एक तरफ पाश थे, दूसरी तरफ पातर. हम जानते ही हैं कि पाश की पक्षधरता क्रांतिकारिता के साथ थी. दूसरी तरफ पातर पाश के विपरीत नहीं हैं. प्रगतिशील हैं, पर शायद उनका बल हिंसा पर नहीं है. पाश ने पातर पर लिखा भी है. बहुत से कवि, कलाकार, बुद्धिजीवी और सामान्य लोग हैं, जो हिंसा की हिमायत नहीं करते. इन पंक्तियों को इस नजर से देखेंगे तो शायद बात स्पष्ट होगी.
विवेक जी,
मेरे नाटक प्रकाशित नहीं हैं. इन दोनों की प्रतियां नटरंग प्रतिष्ठान में उपलब्ध हैं. आपको इन्हें पढ़ने की इच्छा हुई, यह जानकर खुशी हुई. आभारी हूं.
सुन्दर
ReplyDeleteमहान कविता!
ReplyDeleteहो सकता है लोग मुझे कायर कहें,
लेकिन पातर पाश से बड़े कवि हैं, रहेंगे. क्रांतिधर्मिता भी पातर की पाश से कहीं परिप्क्व है.
तमाम कवि इतना तो मानेंगे ही कि क्रांति का मतलब हिंसा नहीं है.
एक सच्चा इंसान आत्मघात करता है
दूसरा सच्चा इंसान ज़िन्दगी को चुनता है
कौन बड़ा क्रांतिकारी है?
पाश में फर्स्ट लुक टाइप की अपील बहुत है और मैं भी दीवानगी के साथ उन्हें पढता रहा हूँ पर उनकी खूबी भी उफान है और दिक्कत भी. पाश या गोरख बहुत आदरणीय हैं पर इनकी कविताओं पर बात करना निषिद्ध नहीं होना चाहिए. मुझे भी पातर कहीं ज्यादा समर्थ कवी लगते हैं पाश से
ReplyDeleteकुछ दिन पहले कवि पंकज चतुर्वेदी ने इस कविता को फेसबुक में अपनी वॉल पर लगाया। कविता आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।
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