Sunday, June 22, 2014

स्टेेट ऑफ होमलैंड

सलमान मासाल्‍हा की कविताएं 


बगीचा
स्‍मृति की पलकों से
मैंने एक बगीचा बनाया। और लगाईं
अंगूर की बेलें और आड़ू के पेड़
एक तरफ
और लटकाए घंटियों के गुच्‍छे
शहतूत के पेड़ों पर। वे
पकेंगे गर्मियों में।
मैंने रस्सियां भी बांधीं
जो नाचतीं हैं हवा के साथ।
बच्‍चे, जो आते हैं
खेलने छुपन-छुपाई
हंसेंगे
दंतविहीन पाखियों की मानिंद। फल
जैसे लड़की का चेहरा
मैं लबों तक लाया।
वो फिसल गई मेरे हाथों से

जब हम बड़े हुए,

और पंछी

उड़ गए वतन से।

और बगीचा जो रखा मैंने

अपनी पलकों के बीच

झाड़ दिए उसने पत्‍ते लफ्जों की तरह

जो आ गिरे हैं कागज पर।  

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