सलमान मासाल्हा की कविताएं
बगीचा
स्मृति की पलकों से
मैंने एक बगीचा बनाया। और लगाईं
अंगूर की बेलें और आड़ू के पेड़
एक तरफ
और लटकाए घंटियों के गुच्छे
शहतूत के पेड़ों पर। वे
पकेंगे गर्मियों में।
मैंने रस्सियां भी बांधीं
जो नाचतीं हैं हवा के साथ।
बच्चे, जो आते हैं
खेलने छुपन-छुपाई
हंसेंगे
दंतविहीन पाखियों की मानिंद। फल
जैसे लड़की का चेहरा
मैं लबों तक लाया।
वो फिसल गई मेरे हाथों से
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