असगर वजाहत |
पंजाबी
कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद शायद बीस से ज्यादा ही पुराना है।
पिछले
दिनों कवि अजेय ने व्ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने
अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्ने
मिल गए। मतलब ये कंप्यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब
पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर
साहब को खत भी लिखा था, पर उनका
जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से
आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र
यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।
4
ग्यारह हज़ार रातें
तुम्हारी
दीवार पर टंगी चमकती घड़ी
मेरा
सूरज नहीं
न
तुम्हारे कमरे की छत मेरा आसमान
और
मैं सिर्फ यही नहीं
जो
तुम्हारे सामने है एक वजूद
तुम
नहीं जानते
मैं
अकेला नहीं
इस
दरवाजे के बाहर खड़ी हैं
उदास
पीढ़ियों के खून पर पलीं
मेरी
ग्यारह हज़ार ज़हर भरी रातें
खूंखार
ताकत भरीं
मेरी
काली फौज
मेरे
इतिहास का क्रोध
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