Sunday, March 11, 2018

सुरजीत पातर की कविताएं

                                                            असगर वजाहत



पंजाबी कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद शायद बीस से ज्‍यादा ही पुराना है। 
पिछले दिनों कवि अजेय ने व्‍ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्‍ने मिल गए। मतलब ये कंप्‍यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर साहब को खत भी लिखा था, पर उनका जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्‍हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि  असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।  


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कभी सोचा ना था

वैसे तो मैं भी चंद्रवंशी
सौंदर्यवादी
संध्यामुखी कवि हूं

वैसे तो मुझे भी बहुत अच्छी लगती है
कमरे की मद्धम रोशनी में
उदास पानी के भंवर की तरह घूमते
एल. पी. से आती
यमन कल्याण की धुन

वैसे तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है
शब्‍दों और अर्थों की चाबियों से
कभी ब्रह्मांडों को बंद करना
कभी खोलना
क्लास रूम में बुद्ध की अहिंसा भावना को
सफेद कबूतर की तरह सहलाना
सफेदों की सी सुंदर देहों पर
बादल की तरह रिमझिम बरसना

वैसे तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है
आसमान में तारों को जोड़ जोड़
तुम्हारा और अपना नाम लिखना
पर जब कभी अचानक
बंदूक की नली में से निकलती आवाज से
पढ़ने गए हुओं की छाती पर
उनका भविष्य लिखा जाता है
या गहरे बो दिए जाते हैं ज्ञान के छर्रे
या सिखाया जाता है ऐसा सबक
कि घर आकर मां को सुना भी न सकें
तो मेरा जी करता है
जंगल में छुपे गोरिल्ला को कहूं:

यह ले मेरी कविताएं
जलाकर आग ताप ले

उस पल उसकी बंदूक की नली में से
निकलती आवाज को
खूबसूरत शेर की तरह बार-बार सुनने का मन होता है
हिंसा भी इतनी कवितामय हो सकती है
कभी सोचा ना था
सफेद कबूतर लहूलुहान
मेरे उन पन्नों पर गिर गिर पड़ता है
जिन पर मैं तुम्हें खत लिखने लगा था

खत ऐसे भी लिखे जाएंगे
कभी सोचा ना था

1 comment:

  1. धन्‍यवाद ध्रुव सिंह जी

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