Tuesday, March 20, 2018

सुरजीत पातर की कविताएं

                                                        असगर वजाहत



पंजाबी कवि सुरजीत पातर साहब की इन कविताओं का अनुवाद शायद बीस से ज्‍यादा ही पुराना है। 
पिछले दिनों कवि अजेय ने व्‍ट्सऐप पर पातर साहब की कविता सझा की तो मुझे भी अपने अनुवादों की याद आई। ढूंढ़ने पर पोर्टेबल टाइपराइटर पर टाइप किए हुए जर्द पन्‍ने मिल गए। मतलब ये कंप्‍यूटर पर टाइप करना शुरू करने से पहले के हैं। ये तब पत्रिकाओं में छपे भी थे। पर वो अंक मेरे पास नहीं हैं। कहां छपे,यह भी याद नहीं है। तब पातर साहब को खत भी लिखा था, पर उनका जवाब नहीं आया। पता नहीं खत उन्‍हें मिला भी या नहीं। अब इन कविताओं का फिर से आनंद लिया जाए। खुशी की बात यह भी है कि  असगर वजाहत साहब ने इन कविताओं के साथ अपने चित्र यहां लगाने की इजाजत मुझे दे दी है।  




11
चौक शहीदां में उसका आखिरी भाषण

यारो चलो अब इस चौक को अब छोड़ दें
अब यह चौक चौराहा ना रहा

था, जब सब कुछ जीवित था
जब नींदों में पत्थर चिने जाते थे
पुत्र नहीं
जब घना अंधेरा था
कुछ अता पता लगता न था
अंधेरे में तीर किधर से आता है
किसका तीर
कोई चिरंजीव लुढ़क जाता है
तीर पर हर एक, किस्मत ही लिखा था
उंगलियों के निशानों को पढ़ना आता न था
तब यह चौक चौराहा था

तब अगर बुत बनके आप इस जगह
उमर भर भी सोचते रहते
कि जाएं किस तरफ
तो भी होते पूजनीय

या जिस भी राह जी चाहे चल पड़ते
एक ही जैसे मासूम होते

अब मासूमियत क्या है
साइड पोज़ है कबूतर का
या बुत की पथराई हुई मुस्कुराहट है
शहर को चोर लोरी सुना रहे हैं
छलावा फूल बन हुआ है
या लोमड़ी को चुपाव चिह्नमिल गया है

अब मासूमियत क्‍या है
अब तो पता है कि पेउ़ हर तरकश
साहिबां ने नहीं वक्‍त ने टांगा था
अब तो पता है कि हवा को भी हाथ उग आते हैं
अगर कंगन सोने का हो
अब तो पता है कि आत्‍मा भी मांस खाती है
अब तो पता है कि खुश्‍बू के भी दांत होते हैं
अब तो पता है शगुनों वाली रात को
मां बेटे को कत्‍ल किसने किया
और कातिल के पदचिह्न किधर जाते हैं 
अब यह चौक चौराहा ना रहा

चलो इस चौक को छोड़ किसी चौराहे पर जाएं
वहां जाकर फिर दुविधा में पड़ें
यह दुविधा में पड़ना वापस कोख में पड़ना है

तुम्हें मैं क्या बताऊं बेशकीमती दोस्तो

तुम तो जानते हो
जिस चौक में
अपने हस्‍सास हंसमुख हमउम्रों का लहू बह जाए
वह चौक चौराहा नहीं रहता

जिन चौकों में हमउम्रों का लहू अभी बह रहा है
वो आगे हैं ।

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