Tuesday, October 20, 2009

तदेउष रोज़ेविच की कविताएं

यहां पर विश्‍वप्रसिद्ध कवि तदेउष रोजेविच का परिचय दूं , उससे पहले उनकी यह कविता पढ़ ली जाए. इससे बात जरा पूरी सी हो जाएगी. कवि यहां बुरे कवि का मजाक उड़ा रहा है, कि मृत्‍यु किसी बुरे कवि को महान कवि नहीं बना देगी. इस श्रृंखला की पांचवी कविता में भी कवि इस युक्ति का प्रयोग करता है जहां वो कहता है संसार के खात्मे के बाद / अपनी मौत के बाद / मैंने पाया खुद को जिंदगी की मझधार में / मैंने रचा खुद को / घड़ी जिंदगानी... इस तरह से दुनिया और जिंदगी को दूर से देखा जा रहा है. निरपेक्ष भाव से. हमारे यहां भी अनासक्ति और निर्लिप्‍तता की बात की जाती है. पर क्‍या अनासक्‍त होकर कविता लिखी जा सकती है? हां, क्‍यों नहीं. पहले के कवि कहते ही थे, बात को पकने दो. अनूभूति को अनुभव में बदलने दो. अनुभव हम से अलग एक पिंड ही तो होता है. खैर! आइए, ये कविता पढ़ते हैं - छोटी सी है.

8

प्रूफ

मृत्यु सुधारेगी नहीं

कविता की एक भी पंक्ति

वह कोई प्रूफ रीडर नहीं है

वह कोई सहानुभूतिशील

महिला संपादक नहीं है

एक बुरा रूपक अविनाशी होता है

घटिया कवि जो मर गया है

है एक घटिया मृत कवि

एक बोर मरने के बाद भी बोर करता है

बेवाकूफ कब्र के पार से भी

लगाए रखता है अपनी बकबक।

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