बनास जन में छपी कविताओं की कड़ी में अंतिम कविता
।।नीम बेहोशी।।
मंत्री की गाड़ी के काफिले से डर लगता है।
उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस के प्रपंच से
लोक लुभावन नीति से
बकबकी उथली प्रीति से
मितली आने गश खाने का डर लगता है।
देश प्रेम के जबर जोश से
मर जाएंगे डटे रहेंगे
छली तब्दीली के डंडे से डर लगता है।
नेता, सहनेता, उपनेता, धननेता
नेता निर्माता, नेता क्रेता, विक्रेता, नीलामीकर्ता
घेर घार के खड़े हुए हैं
गलियों सड़कों चौराहों पर अड़े हुए हैं।
हम नीम बेहोशी में पड़े हुए हैं सड़े हुए हैं।।
याुक्रिया सर
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