बनास जन में छपी कविताओं में से एक और कविता पढ़िए।
।।हलफनामा।।
फंसा फंसा तो इसलिए लग रहा है
क्योंकि दर्जी ने कमीज तंग सिल दी है
यह कहना खतरे से बाहर नहीं है कि दर्जी किसकी सलाह
पर चला है
रेडीमेड से ही काम चलाना पड़ता है
माप ले के सिलने वाले चलन और जेब से बाहर हैं
हम कंफर्ट फिट वाले स्लिम फिट में कैसे समाएं
इधर उधर की ही हांकनी पड़ेगी
वर्ना मेरी क्या मजाल कि कहूं कैसे वक्त में आ
गए हम
मैं पंतजली का राशन लेता हूं
पहले श्री श्री को सुनता था
अब सदगुरू की राह सद्गती पर हूं
विज्ञापन बेनागा देखता हूं
सोशल मीडिया पर बोलता नहीं
हवा बहुत भर जाती है
तो इशारों इशारों में निकल जाती है
उस पर मेरा कोई बस नहीं डिस्क्लेमर अलबत्ता
लगाए रहता हूं
समझ गया हूं हम कैसे तीसमार खां थे
समझ कुछ रहे थे चल कुछ रहा था
घबराने की इसमें क्या बात! रेलमपेल रुक थोड़ा न जाएगी
सोचना भी अब जरूरी नहीं
न हरिद्वार जाकर नहीं त्यागा सोचना
यूं ही, यहीं, पता नहीं कैसे ? कब्ज की तरह अपने आप
ओंठ सिले (गए) तो सोचना भी बंद हो गया
अब क्या ? अब सब बंद ही है
बंदा है सलामत है
न यह न पूछिए ये बयान लिखवाया गया है
या खुद लिखा है
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह! गज़ब।
ReplyDeleteफस्सेया फस्सेया ता तां लग्गा दा
ReplyDeleteकैंह भई दरजीयें कमीच तंग सीई त्तिह्यो
ए बोलना खतरे ते बाह्र नि है भई दरजी कुस्दीया स्लाही पर हा चल्लेया
रैडी मेटां नै ही कम्म चलाणा पौन्दा
नाप लई नै सियाणे दे रुआज तां होर भी जेह्बां ते बाह्र हन
असां कम्फर्ट फिटां ते स्लिम फिटां च किह्ञ्यां स्माहण
तांह् तुआंह् दी ही हक्कणी पौन्दी
नईतां मेरी क्या मजाल है मैं बोल्लां भई कुस कदेह बगते च आई ढुके असां
मैं पतञ्जली दा रासण लैन्दा
पैह्लै सिरी सिरी यो सुणदा हा
हण सद्गुरूये दीया राह सद्गतिया पर है
ऐड्डां बेनाग्गा दिखदा
सोशल मीडिये पर बोल्दा नी
हौआ बड़ी भरोई जान्दी
तां इसारेयां इसारेयां च निकळी जान्दी
तिस पर मेरा कोई बस नी डिस्कलेमर अलबत्ता लाई रखदा
समझीय्या मैं असां कैसे तीसमारखां थे
समझा दे कुछ थे चलेया कुछ था
घाबरने दी इस्च क्या गल्ल है रेलम्पेल रुकी होड़ी नि जाणी
सोचणा भी हण जरूरी नी
न हरिद्वार जाई नै नी त्याग्या सोचणा
इञ्यां ई, एत्थी, पता नि किञ्यां कब्जीया साह्यी अपणे आप लिब्बड़ सच्ची यै तां सोचणा भी बन्द होय्यीया
हण क्या? हण सब बन्द ही है
बन्दा है सलामत है
न ए मत पुच्छदे भई ब्यान लुखुआह्या है कि अप्पूं लिखेया
एह् बड़ा छैल़ अनुवाद है।
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