आपने बनास जन में छपी चार कविताओं में से एक कविता खेल कुछ दिन पहले पढ़ी थी। यह अंक ऑनलाइन ही छपा है। आज उन्हीं चार में से दूसरी कविता नया हाकिम पढ़िए। धीरे धीरे चारों कविताएं पढ़वाता हूं। ऊपर जलरंग में चित्रकृति कवि महेश वर्मा की है। हमारे पहाड़ी भाषा के ब्लॉग दयार के लिए उन्होंने कृपापूर्वक अपनी कुछ चित्रकृतियां हमें दी थीं। यह उन्हीं में से एक है।
।।नया हाकिम।।
बातों की लड़ी थी, कड़ियल छड़ी थी
वो फुलझड़ी कतई न थी
जहर बुझी बारूद लिपटी
कांटेदार तार थी
सरहद पर खूंखार थी या
सरहदें छेक रही भूगोल में
इतिहास में, विश्वास में, श्वास में
अपनी ही तरह का ताना बाना बुनना था
सारी दुनिया को धुनना था
एक गद्दा एक लिहाफ, मन चाहा गिलाफ
जनता ने ऐसे ही हाकिम को चुनना
था।
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