Friday, August 5, 2016

पुरस्‍कृत कविता

कल भारत भूषण अग्रवाल पुरस्‍कार शुभम् श्री की 'पाेएट्री मैनेजमेंट' कविता  को देने की घोषण्‍ाा हुई और जैसा अक्‍सर होता है, सोशल मीडिया पर अच्‍छे-बुरे, सही-गलत की बहस छिड़ गई। पहली प्रतिक्रिया में मुझे लगा कि कविता की गिरी हुई सामाजिक स्‍िथति को कविता के केंद्र में लाकर कविता का दायरा संकुचित कर दिया गया है, यह क्‍या बात बनी। एक तो वैसे ही कविता समाज के हाशिए पर पड़ी है और जब उसी सीमित समाज यानी कवि या कविता पर कविता लिखी जाती है तो ऐसा लगता है कवि अपना ही रोना रो रहा है। हालांकि बहुत लोगों ने इस विषय पर कविताएं लिखी हैं, मैंने भी लिखी हैं। फिर भी यह एक संकरी गली लगती है। एक पत्रकार मित्र ने टिप्‍पणी भी मांगी पर मुझे इस तरह की बहस में पड़ने का मन नहीं करता। हम लोग रचना को सराहने या खारिज करने की रस्‍साकशी में पड़ जाते हैं। कल से सोशल मीडिया में यही अखाड़ेबाजी चल रही है। इसमें ज्‍यादातर लेखक ही शामिल हैं। पाठक तो प्रतिक्रिया देते दिखते नहीं। इसका मतलब लेखकाें का कवि, कविता, पुरस्‍कार, पुरस्‍कारपाता, पुरस्‍कारदाता, संस्‍था आदि से भरोसा उठ चुका है। उन्‍हें हर चीज जुगाड़, सेटिंग, ढकाेंसला आदि लगती प्रतीत होती है। ऐसे भी होंगे जिन्‍हें ऐसा न लगता हो, पर उनकी उपस्‍थिति नेपथ्‍य में रह जाती है। 

इस अखाड़ेबाजी की प्रेरणा से कविताकोश पर और समालाेचन समूह पर शुभम् श्री की कुछ और कविताएं पढ़ीं। आश्‍वस्‍त हुआ। भाषा में एक तेज-तर्रारी, और खिलंदड़ापन है। कथ्‍य और कहन में चौंकाऊभाव इफरात में है। शब्‍द बहुत हैं, उन पर काबू कम है। तोड़-फोड़ का मोह सा है। कविताएं मंचों के लिए उपयुक्‍त हैं। यह  खामी नहीं है, पाठक तक पहुंचने का एक सशक्‍त माध्‍यम है। नई पीढ़ी के पाठक तक पहुंचने वाली भाषा है। यह एक बड़ी खूबी है। 

शाम को घर में मैंने सुमनिका (मेरी पत्‍नी, हिंदी की प्राेफेसर, सौंदर्यशास्‍त्र की अध्‍येता) और अरुंधती (मेरी बेटी, जिसने हाल ही में अंग्रेजी साहित्‍य में एमए किया है) से चर्चा की। हम तीनों ही कविता प्रेमी तो हैं ही। उन दोनों को कविता पढ़ कर सुनाई। बुखार और ब्रेकअप वाली भी। दोनों को ही कविताएं पसंद आईं। चर्चा चर्वण हुआ। मेरे किंतु परंतु को बगलें ही झांकनी पड़ीं।

1 comment:

  1. सहमत.
    रचनाकार में मैंने हजारों कविताएँ छापी हैं, और इस बहाने आधा-अधूरा पढ़ा-गुना भी है. शुभम श्री की कविताएँ अलग तेवर की हैं. अंदाजेबयां में नायाब, खिलंदड़ा पन तो है ही, जमाने को ठेठ आईना दिखाता, क्रांतिकारी तेवर और 'बेहद तीक्ष्ण धार' भी है, जो किसी किसी को ही हासिल होता है. जो इन्हें खारिज कर रहे हैं उन्हें ही खारिज हो जाना चाहिए. :)

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