रणवीर सिंह बिष्ट |
तीतर की पूंछ
मेरे होठों में है एक छोड़ा हुआ वतन
अपने कंधों से झाड़ता गेहूं की बालियां
जो चिपक गईं उसके सिर के बालों से
जैतून के झुरमुट में
किसान यादों का हल चलाता है
और बिसर जाता है जंगली पंछियों की आरजू
अन्न के दानों के लिए
पहाड़ी गोल पत्थरों की हथेलियों पर
टपके भोर के बादल
पहाड़ियों से चारसूं दबे हुए
शिकारी आत्मसमर्पण से मना करता है
गूदडो़ं से भर लेता है अपना झोला
और खोंसता है उसमें तीतर की पूंछ
ताकि लोग समझ जाएं
वो है जबरदस्त शिकारी।
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ReplyDeleteप्हाहाड़ीया च नुवादेय्या
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मेरेयां लिब्बडां च है इक्क छड्डे:या वतन
अपणेयाँ मूँहन्डेयाँ ते झाड़दा कणका दीयां बॉळीयाँ
सै:जे सच्चीय्यीयाँ ति:दे सिरे देयाँ बाळा नै
जैतून्ना देयाँ झुड़ेयाँ च
किरसाण यादां दे हळ बा:हन्दा
कनै वसारी छड्डदा जंगलां देयाँ पंछीयाँ दी तां:ह्ग
अन्ने देयाँ दाणेयाँ दी खातिर
प्हाहाड़ी गोलमटोळ पत्थराँ दीयां ह्थ्याळीयाँ प्राह्लैं
टपकण भ्यागसारे दे बद्दळ
रिढियाँ नै चारसूं जको:ह्यो
शकारी आत्मसमरपणे ते मना: करदा
गुद्दड़गाळयाँ नै भरे:ह्या अपणा झोळा
कनै हड़ोस्सदा तिस्च तितरे दीया पूच्छा
जां जे लोक समझी जा:ह्न
भई सै: है जबरजस्त शकारी।
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Deleteवाह जी वाह। बड़ा बधिया अनुवाद।
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