छायांकन: अरुधती |
भृकुटियां तनी रहीं सोच की प्रत्यंचा पर सालों साल
फसल कटे खेतों के खूंटों पर चलना होता था
जब झुके कंधे तुम्हारे
खिलने लगीं करुण
मुस्कान की कोमल कलियां
पराभव की प्रज्ञा
में झुकी जातीं शस्य वनस्पतियां
ओ पिता!
अभी उस दिन बटन बंद
कॉलर में शर्मा जी
अपने में मगन बैठे
आकर सामने सिर झुकाए
लगा बुदबुदाएंगे
अभी गायत्री मंत्र ओंठ तुम्हारे
ओ पिता!!
एक समय तुमने कंधे
पर उठाया
एक समय मैंने कंधे
पर लटकाया
बीच के तमाम साल क्यों
गूंजती रही
केवल प्रत्यंचा की
टंकार
कितना ज्यादा खुद
को माना
कितना कम तुमको
जाना
ओ पिता!!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " चटगांव विद्रोह की ८६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआपको जन्मदिन के सुअवसर पर सुखद एवं मंगलमय जीवन के लिए बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteकविताजी,धन्यवाद।
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