छायांकन: अरुधती |
मैं 365
दिन वही करता हूं जो
उसके अगले दिन करता
हूं
मुझे मालूम है कि
मैं 365
दिन वही करता हूं और
मुझे 365
दिन यही करना है
वही वही नई बार करता
हूं
हर बार वही वही नई
बार करता हूं
कई कई बार नई नई बार
करता हूं
नए को हर बार की तरह
हर बार को नए की तरह
करता हूं
वार को पखवाड़े
पखवाड़े को महीने महीने को साल साल को दशक दशक को सम्वत् की तरह
सम्वत् को सांस की
तरह भरता हूं
फांस की तरह गड़ता
हूं सांस सांस
फांस फांस सांस फांस
न अखरता हूं न अटकता
हूं
भटकने का तो यहां
कोई सवाल ही नहीं
अजी यहां तो सवाल का
ही कोई सवाल नहीं
उस तरह देखें तो
यहां ऐसा कुछ नहीं
जो लाजवाब नहीं
न, मेरे
पास लाल रंग का कोई रुमाल नहीं
न मैं गोर्वाचोव हूं
जिसने फाड़ दिया था
न वो बच्चा हूं
जिसके पास था
और कि जो 365
दिन की रेल को रोक दे
कोई खटका नहीं झटका
नहीं
कभी कहीं अटका नहीं
ऐसी बेजोड़ है 365
दिन की
अनंत सुमिरनी
घिस घिस के चमकती
कहीं कोई जोड़ नहीं
न सिर न सिरफिरा
बस गोल गोल फिरा
फिरा मारा मारा फिरा
और फिर यहीं कहीं
कहीं नहीं गिरा
गिरा गिरा गिरा
रोज़ फिर उसी पिछले कल बाले कल को आज और उसे अगले पल फिर जीना।
ReplyDeleteबहुत खूब पकड़ा है। अनूप जी आपने इस रोज़ वाले रोज़ को।
बधाई मज़ा आया।
धन्यवाद कुूशल जी, यह हम लोगों के जीवन की विडंबना ही है कि इस तरह की चक्करघिन्नी में फंसे रहते हैं।
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