पिछले वर्ष विश्वरंग में एक मुख्य सत्र युद्ध और निर्वासन पर था। उसमें मेरी भागीदारी भी रही। अभी विश्वरंग पत्रिका का कथेतर गद्य अंक आया है। उसमें यह प्रस्तुति भी प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए।
मैं युद्ध और निर्वासन पर अपनी बात कुछ
कवियों, उनकी कविताओं और एक कहानी के हवाले से रखने की कोशिश
करूंगा। कवि अलग-अलग काल और अलग-अलग जगहों के हैं।
युद्ध पर कवियों ने लिखा है। सैनिकों ने
भी लिखा है - कवि जो सेना में गए और सैनिक जो कविता लिखने को विवश हुए। दूसरे
विश्व युद्ध के दौरान एक कविता संग्रह छपा (Poems of This war by
Younger Poets) जिसमें सैनिकों की लिखी हुई कविताएं हैं। इसमें एक
कविता डग्लस गिब्सन की है-
Air Raid Warning यानी हवाई हमले की चेतावनी
सायरन की आवाज के बाद, हवा
अजीब तरीके से स्थिर है, इसमें
सांस
खींची गई निराशा में
कि बच्चे मौत से हाथ मिला रहे हैं
गली में जोरदार ठहाका
अचानक बंद हो जाता है टूटी हुई धुन की तरह
हवा से होकर आती है ताल
बमवर्षकों की दूर से
आसमान जो जानता है शाश्वत सूर्य और चंद्रमा को
हर एक हवा और लहर के रहस्य को
आदमी की बेवकूफी का मजाक उड़ाता है
विश्व कर रहा है आत्महत्या
उदास है
विधाता की आंख।
------
पोलिश कवि
तदेउष रोजेविच के बारे में हम सभी जानते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध में वे भी सेना
में थे। उनका भाई भी सैनिक था और नाजी यंत्रणा शिविर में मारा गया था। रोजेविच की दो
कविताओं के बिंब देखिए। एक कविता है
The Surviver
बचा हुआ
मैं चौबीस
का हूं
कसाईखाने
में ले जाया गया
मैं बच
गया
ये खोखले
समानार्थी शब्द हैं
इंसान
और जानवर
प्यार
और नफरत
दोस्त
और दुश्मन
अंधकार
और प्रकाश
एक सा
तरीका है इंसानों और जानवरों को मारने का
मैंने
देखा है
:
कटे पिटे
लोगों से लदे ट्रकों के ट्रक
वे बचाए
नहीं जाएंगे।
विचार
महज शब्द हैं
:
गुण और
गुनाह
सच्च
और झूठ
खूबसूरती
और बदसूरती
हिम्मत
और कायरता
गुण और
गुनाह का वजन है बराबर
मैंने
देखा है
:
इंसान
में जो था गुनहगार और गुणवान भी
मिले
कोई गुरू मुझे
जो मुझे
फिर से देखने सुनने बोलने के काबिल बनाए
वस्तु
और विचार को नाम दे फिर से
प्रकाश
से अंधेरा दूर करे
मैं चौबीस
का हूं
कसाईखाने
में ले जाया गया
मैं बच
गया।
·
माने सब इतना गडमड हो गया है कि वस्तु-अंतर्वस्तु, वृत्ति-प्रवृत्ति, विचार-अवधारणा में अंतर करना ही
मुश्किल है।
·
कटे-पिटे लोगों से लदे ट्रकों के
ट्रक का बिंब ही समय की वीभत्सता को व्यक्त कर देता है।
·
गुण – गुनाह / सच – झूठ / खूबसूरती
– बदसूरती / हिम्मत – कायरता महज शब्द हैं। उनके अर्थ नहीं बचे हैं।
·
कवि इतनी भर कामना करता है कि कोई
मिले तो वह देखने सुनने बोलने के काबिल बनाए।
इनकी एक और कविता है
रूपांतरण
मेरा
छोटा बेटा आता है
कमरे
में और कहता है
'तुम गिद्ध हो तो मैं चूहा'
मैं अपनी
किताब फेंकता हूं परे
डैने
और पंजे उग आते हैं मुझमें
उनकी
अपशगुनी छाया
दीवारों
पर दौड़ती है
मैं हूं
गिद्ध वह है चूहा
'तुम हो भेड़िया मैं हूं बकरा'
मैंने
मेज का चक्कर लगाया
और मैं
हो गया भेड़िया
खिड़की
के पल्ले चमकते हैं
जैसे
विषदंत
अंधेरे
में
वह दौड़ता
है मां की तरफ
निरापद
उसका
सिर छुपा हुआ उसकी पोशाक की गर्माहट में
·
इसमें बेटा पिता को कहता है कि तुम
गिद्ध हो मैं चूहा। पिता वैसा ही महसूस करने लगता है।
·
फिर बेटा कहता है – तुम भेड़िया हो
मैं बकरा। और पिता वैसा ही हो जाता है।
·
यह है युद्ध का असर जो व्यक्ति को
भीतर तक बदल देता है।
शुरु में मैंने Poems of This war by Younger
Poets पुस्तक का जिक्र किया है। उसकी भूमिका अंग्रेजी कवि एडमंड
ब्लंडन {Edmund Blunden (1896-1976)} ने लिखी है। उन्होंने लिखा है –
·
कविता का सिद्धांत है मासूमियत भरी नजर।
·
कविता वहीं देखती है जहां सत्य होता है।
·
कविता उन्हीं चीजों को दर्ज करती है जिन्हें वह ऑब्जर्व करती है।
इस तरह हम देखते
हैं कि
युद्ध से पैदा
होती भयावहता, विनाश और असंतुलन को कवि कई रूपों में देखता है।
युद्ध बाहरी तौर पर ही तबाही नहीं मचाते, भीतर से भी
तोड़ते हैं और संवेदनहीन बनाते हैं।
------
हम जानते हैं, टी. एस. एलियट की कविता में युद्धों की छाया दिखती है। उन्होंने दक्षिण
अफ्रीका में मारे गए भारतीयों पर एक कविता लिखी थी 1943 में।
दक्षिण
अफ्रीका में मारे गए भारतीयों के लिए
(यह
कविता भारत पर क्वीन मेरी की किताब (हराप एंड कं. लि. 1943) के लिए सुश्री सोराबजी
के अनुरोध पर लिखी गई थी। एलियट ने यह कविता बोनामी डोबरी को समर्पित की है।)
आदमी
का ठिकाना होता है उसका अपना गांव
उसका
अपना चूल्हा और उसकी घरवाली की रसोई;
अपने
दरवाज़े के सामने बैठना दिन ढले
अपने
और पड़ोसी के पोते को
एक
साथ धूल में खेलते निहारना।
चोटों
के निशान हैं पर बच गया है, हैं उसे बहुत सी
यादें
बात
चलती है तो याद आती है
(गर्मी
या सर्दी,
जैसा हो मौसम)
परदेसियों
की,
जो परदेसों में लड़े,
एक
दूसरे से परदेसी।
आदमी
का ठिकाना उसका नसीब नहीं है
हरेक
मुल्क घर है किसी इंसान का
और
किसी दूसरे के लिए बेगाना। जहां इंसान मर जाता है बहादुरी से
नसीब
का मारा,
वो मिट्टी उसकी है
उसका
गांव रखे याद।
यह
तुम्हारी ज़मीन नहीं थी, न हमारी: पर एक गांव था मिडलैंड
में,
और
एक पंजाब में,
हो सकता है एक ही हो कब्रस्तान।
जो
घर लौटें वे तुम्हारी वही कहानी सुनाएं:
कर्म
किया साझे मकसद से,
कर्म
पूर्ण
हुआ, फिर भी न तुम न हम
जानते
हैं,
मौत आने के पल तक,
क्या
है फल कर्म का।
·
एक सैनिक अपने गांव लौट आया है और अपने परिवेश में रहते हुए याद करता है
·
परदेसियों को, जो परदेसों में लड़े / एक दूसरे से परदेसी
·
कोइ सैनिक अपने घर से दूर परदेस में मारा जाता है।
·
एक ही कब्रस्तान में न जाने कहां कहां के सैनिक दफ्न होंगे।
·
यह है विडंबना ।
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यूक्रेन रूस के
बीच अभी भी लड़ाई चल रही है। तबाही के बीच भी कवि कलाकार अपनी आवाज उठा रहे हैं।
वहां की एक कवयित्री है ल्यूबा किमचुक। वह कहती है भाषा उतनी ही खूबसूरत है जितनी
यह दुनिया। पर जब कोई आपकी दुनिया को नष्ट करता है, तो भाषा उसे प्रतिबिंबित करती है। वह डेनवास क्षेत्र की रहने वाली है। जब
अपनी मातृभूमि को नष्ट होते देखती है तो तकलीफ से कहती है-
‘‘शहरों और कस्बों के डीकम्पोजीशन को बताने के लिए मैं
शब्दों को डीकम्पोज करती हूं।’’
मतलब मातृभूमि की तोड़फोड़ के बरक्स शब्दों की तोड़फोड़। और इस शब्द डीकम्पोज को कम्पोज या कम्पोजीशन, और खास तौर पर संगीत की कम्पोजीशन के संदर्भ में सोच कर देखिए। संगीत कम्पोज किया जाता है या उसकी रचना की जाती है। उसका उलट हुआ कि उसे डीकम्पोज किया जाएगा यानी उसकी विरचना की जाएगी। एक कवि को अपने समय की भयावहता, विसंगति औार बर्बरता को दर्ज करने के लिए मानवता के कोमल, सुंदर, सभ्य तत्वों की विरचना करके दिखाना पड़ रहा है। मानवता के इन अमूल्य तत्वों को हासिल करने में शताब्दियां लगी हैं। और इन्हें अमानवीयता के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करना पड़ रहा है।
यह कवयित्री ल्यूबा किमचुक अपनी कविता The Making of Tenderness में कोमलता को सारे ध्वंस के बरक्स खड़ा करती है। यह कोमलता रोजमर्रा की जिंदगी के कामों से जुड़ी है। वह एक वृत्तांत रचती हैं। घर की खिड़कियों पर सेलो टेप लगी हुई है। वह एक मॉल से साफ-सफाई का सामान लाती है। बाल बनाने के लिए हेयर ब्रश खरीद लेती है जो ‘मेड इन खारकीव’ है। वही खारकीव जो युद्ध में लगभग ध्वस्त हो चुका है। खारकीव का अर्थ है- सनातन। ध्वंस के बावजूद ‘मेड इन खारकीव’ उसके अंदर भरोसा जगाता है। वह महसूस करती है कि ब्रश कितना कोमल है। वह यह सोच कर रोमांचित हो उठती है कि टूटते हुए शहर में कोमलता का सृजन हो रहा है। यह टेंडरनेस कहां बनती होगी? फैक्टरी में या बमशेल्टर में? मॉल में उसे एक और शहर माइकोलेव का बना संतरे का रस मिल जाता है। खेरसन का बना टमाटर का पेस्ट मिलता है कैचअप जैसा। क्रेमंचक का योगर्ट वहां है। वह बखमत का नमक ढूंढ़ती रहती है।
अपने कई शहरों
की चीजें वह ले आई। खिड़कियां साफ कर लीं। रेडियो पर उद्घोषणा होती है कि काले
सागर से दागी गई मिसाइल नाकाम कर दी गई है। सारे शहर से होती हुई एक टेंडरनेस यानी
कोमलता पूरे घर में फैल जाती है। वह इसी से बाल बनाती है। ब्रेकफास्ट में, खाने में, कोमलता भरी चीजें मौजूद हैं।
· यह है बर्बरता के खिलाफ दैनंदिन जीवन की कोमलता का महास्वप्न।
· वह कहती है, ‘‘मेहनत से हासिल हुई जीत बेहतर होती है / कभी जाना नहीं था कोमलता हो सकती है इतनी धारदार / कभी नहीं / पर इसे मैं आज़माउंगी जरूर / वादा रहा’’
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अब युद्ध से
उपजे निर्वासन पर बात करें। युद्ध प्रत्यक्ष परोक्ष कई तरह के होते हैं। इंग्लैंड
की एक कवयित्री है वार्सन शाइर, जिसका जन्म एक
सोमाली परिवार में कीनिया में हुआ। उनका परिवार विस्थापित होकर ब्रितानिया आ बसा। उसकी
एक कविता है Home यानी घर । यह उन लोगों के बारे में है जिन्हें घर छोड़ना पड़ता है। जिनका घर शार्क
के जबड़े की तरह हो गया है, बंदूक की नाल हो गया है। घर घरवाले को खदेड़ देने पर उतर आया है।
घर के इस तरह खूंखार हो जाने या दुश्मन हो जाने की कई वजहें होती हैं, हम जानते ही हैं। पर यह परिवर्तन बेहद पीड़ादायक है। वतन को छोड़ने की
मजबूरी, अपनी पहचान का संकट, अपमान, दूसरे देशों के कानून, उनके जुल्म…. कई कुछ बनैले और घातक प्राणियों की तरह सामने आता
जाता है। जब कोई निवासी निर्वासित होता है, अपना घर खोता है, शरणार्थी बनता
है तो वह एक भयावह दौर से गुजरता है। और ऐसा दुनिया में कई जगह हो रहा है। कई
वजहों से हो रहा है। हम भी इससे अछूते नहीं हैं। लोग तथाकथित गैरकानूनी ढंग से
दूसरी सरहदों में प्रवेश करते हैं। नावों से लंबी समुद्री यात्राएं। ट्रकों बसों
में छिप कर यात्राएं। पैदल यात्राएं। बच्चों बूढ़ों महिलाओं बीमारों की जान जोखिम
में डाल कर। पराई जगहों पर प्रताड़नाओं, यंत्रणाओं का
सामना करना पड़ता है। निजी, मनोवैज्ञानिक, शारीरिक सदमे अलग से। निर्वासन के
ये सारे पहलू वार्सन शाइर ने अपनी इस कविता में बयान किए हैं।
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निर्वासन का
एक और रूप देखिए। फिलीस्तीन की पीड़ा और अपने वतन के लिए उनके संघर्ष से हम सब
परिचित हैं। वहां के एक लेखक हसन कानाफानी (Ghassan Kanafani) की एक कहानी है ‘गाज़ा से एक खत’। यह कहानी
बमवारी के बीच ढहते हुए अपने शहर के साथ नए सिरे से रिश्ता कायम करने की दास्तान
है।
चूंकि मुल्क के
हालात बदतर हैं, हमेशा जान हथेली पर रख कर रहना पड़ता है। कथानायक
मुल्क छोड़ देना चाहता है। यानी वार्सन शाइर के शब्दों में ‘शार्क के जबड़े’ से निकल भागना
चाहता है। अपने एक दोस्त के साथ उसका समझौता है कि पहले दोस्त जाएगा, फिर वह कथानायक को बुला लेगा। वे दोनों कैलिफोर्निया जा बसना चाहते हैं। घर
में कथानायक की बूढ़ी मां है, एक बेवा भावी और
उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। वह सोचता है, चला जाउंगा, मेरी जिंदगी बेहतर हो जाएगी। इन्हें कुछ पैसे भेजता रहूंगा। उसके लिए उसकी
अपनी सुरक्षा प्रमुख है। जब तक यह इंतजाम हो, वह कुवैत में मास्टरी करके गुजारा करता है। एक बार छट्टी पर घर आता है, मुल्क छोड़ देने की तैयारी के साथ। भाभी कहती है उसकी बेटी जख्मी हालत में
अस्पताल में भर्ती है, उसे मिल आओ। अस्पताल में मासूम बच्ची को देखकर वह
पिघल जाता है- चाय के कप में चीनी की तरह। बच्ची की वेदना को कम करने के लिए वह
उसे बहलाता है कि वह उसकी मनपसंद लाल पेंट लाया है। जल्दी ठीक हो जाओ और पहनो।
बच्ची धीरे से चादर हटाती है। उसकी एक टांग काटनी पड़ गई थी।
यह दृश्य कथानायक को आमूलचूल बदल देता है। अब उसे तपते सूरज में नया गाजा दिखता है, खून से लथपथ। उसे लगा यह एक नई शुरुआत है। उदासी का अब कोई काम नहीं है। यह एक चुनौती है। बमों, मिसाइलों के हमलों के कारण काटे जाने वाले अंगों को वापस हासिल करने की चुनौती। उस बच्ची ने अपने छोटे भाइयों को बचाने की खातिर अपनी टांग खोई है। भाग जाती तो बच जाती। पर वह भागी नहीं। और कथानायक कैलिफोर्निया भाग रहा था। अब वह इरादा बदल देता है। दोस्त को भी कहता है अपने वतन लौट आओ।
---------
अब निर्वासन का एक
और उदाहरण। निर्वासन ही नहीं, अपने देश को लौट
जाने का स्वप्न। तिब्बती शरणार्थी। आप जानते हैं। अब तो इनकी यहां जन्मी पीढ़ी भी
प्रौढ़ हो रही है। तिब्बती शिद्दत के साथ अपने देश को प्यार करते हैं। लौट जाने का
महास्वप्न देखते हैं। इस सारे प्रसंग में
·
सत्ता के सामने अस्मिता, अहिंसा और धीरज
का एक लंबा विमर्श निर्मित होता है।
·
मानवता का एक और रूप।
तिब्बती कवि
लासंग शेरिंग की एक कविता है-
तिब्बत
अपनी आंखों से
मैं
देखूं तिब्बत का स्वच्छ शफ्फाक आकाश
उसकी
ऊंची बर्फ लदी चोटियां
हरी
भरी पहाड़ियां और वादियां
पर
देखूं सिर्फ बंद आंखों से
मैं
देखूं अपनी प्यारी न्यारी मादरे जमीन को
मैं
देखूं वो घर जहां मैं पैदा हुआ
मैं
देखूं अपने बचपन के दोस्त सारे
पर
देखूं सिर्फ बंद आंखों से
मैं
लौट रहा आजाद तिब्बत को
मैं
पहुंचा अपने पुराने घर के कस्बे में
मैं
जा मिला अपने कुनबे से
पर
देखूं सिर्फ बंद आंखों से
ऐसा
क्यूं है कि
यह
सिर्फ मेरे सपनों में है
सिर्फ
बंद आंखों से ही
देखूं
तिब्बत मैं
पर
ऐसा क्यों है कि
मेरी
जिंदगी में अच्छी बातें
होती
हैं सिर्फ
मेरे
सपनों में
क्या
जागूंगा मैं एक सुबह
पाउंगा
खुद को तिब्बत में
और
सच में होगा यह
कि
नहीं देख रहा होउंगा सपना मैं
हां
क्या कभी लौटूंगा मैं
आजाद
तिब्बत में ?
और
देखूंगा कभी
तिब्बत
को अपनी आंखों से
-------
दुनिया चूंकि देशों, सरकारों, धर्मों, जातियों में बंटी हुई है, आदमी का दिमाग तेज है पर फितरती भी है। श्रेष्ठताबोध, वर्चस्व, आधिपत्य और लालच भी अपना खेल खेलते रहते हैं। इसलिए दुनिया निरंतर छलनी और लहूलुहान होती रहती है। बहुत से लोग राष्ट्र की सीमाओं को बेमानी मानते हैं। यूं तो हमारा भी स्वप्न वाक्य है – बसुधैव कुटुंबकम्। पर फिलहाल तो साधो! कुटुंब में झगड़ा भारी। खैर!
इस्राइल का एक
लेखक है सलमान मासाल्हा। वह हिब्रू और अरबी दोनों भाषाओं में लिखता है और ड्रूज है
यानी अनेक दर्शनों के मिश्रण में यकीन करने वाला।
सन् 2006 में उसने जेरुसलम में एक ऐसा बहुलतावादी मादरे-वतन बनाने की घोषणा की, यहूदी, अरब और दूसरे सभी जिसके नागरिक होंगे और इसका अंग्रेजी नाम रखा 'स्टेट ऑफ होमलैंड'। उसने कहा कि इसमें किसी को अतीत से चले आते कोई अधिकार नहीं मिलेंगे, बल्कि भविष्य के प्रति उत्तरदायित्व होंगे। यहूदीवाद और इस्लाम दोनों 'स्मृति' पर बहुत महत्व देते हैं, लेकिन होमलैंडर 'भूलना' चाहेंगे। उसने लिखा भी है, ''विस्मृति स्मृति की शुरुआत है''। इस नए मुल्क की भाषाएं हिब्रू और अरबी होंगी। यहां सरकार का मुखिया नहीं, लोगों का मुखिया होगा, जिसकी सत्ता सिर्फ कूड़ा इकट्ठा करने, सड़कें पक्की करने और स्कूल बनवाने तक सीमित होगी। यह देश एक बडी़ नगरपालिका की तरह होगा। राष्ट्रीयता की भावना व्यक्ति के भीतर रहेगी। यहां मीटिंग हाउस नाम का मंदिर होगा, एक बढ़िया डी जे उसका पुजारी होगा और प्रार्थनाओं का स्थान कविताएं ले लेंगी। धर्म यहां बिल्कुल निजी मामला होगा। धर्म पर आधारित राजनैतिक पार्टियों पर रोक होगी, बल्कि बेहतर हो अगर कोई पार्टी हो ही नहीं। बजाए इसके सार्वभौमिक मानववाद को मंच प्रदान करने वाली एकमात्र पार्टी हो। कवि पश्चिमी लोकतंत्र के खिलाफ है क्योंकि वो पूरब को मुआफिक नहीं आता। यहां तो ''उदारपंथियों की तानाशाही'' होगी। वो कहता है हम शांतिवादी नहीं हैं। हम अपने मुल्क में आजाद बने रहने के अपने अधिकार के लिए दृढ़ रहेंगे। हमारी फौज तो होगी पर हम लडा़ई नहीं लड़ेंगे। यह मुल्क एक ऐसी प्रबुद्ध किस्म की रचना होगी कि हर कोई इसका नागरिक बनना चाहेगा। एक दिन हम सारी दुनिया को, बिना एक भी गोली दागे, जीत लेंगे।
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