Friday, July 28, 2023

कला का अधुनातन ठिकाना और एक नाटक

 


नया सांस्कृतिक केंद्र


हमारी एक बच्ची ने अपने माता-पिता और हमारे लिए एक नाटक का टिकट खरीद दिया था। उसे देखने कल शाम हम लोग नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर बांद्रा कुर्ला कंपलेक्स में गए थे। पिछले दिनों प्रकाश हिंदुस्तानी ने इस सेंटर पर विस्तृत रिपोर्ट लिखी थी। शायद तब यह केंद्र शुरू हो रहा था। वह एक तरह की विस्तारित प्रेस रिलीज लग रही थी। इतना महिमामंडन उस पोस्ट में था कि अधिकांश लोग केंद्र की विराटता से भयभीत हो गए थे। उस पर विद्याधर दाते की टिप्पणी भी विजय कुमार जी ने शेयर की थी। कल डरते डरते हम उस परिसर में घुसे। जाहिर है विशालकाय और भव्य तो है ही। उसमें तीन सभागार हैं - ग्रैंड थिएटर, स्टूडियो और क्यूब। ग्रैंड थिएटर में दो हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है। उसमें अलग-थलग बैठने के बॉक्स भी हैं। स्टूडियो उससे छोटा सभागार है। क्यूब नाम का सभागार उससे भी छोटा है जिसमें चारों तरफ दर्शक बैठते हैं। इस परिसर में चित्रकला प्रदर्शनी का भी एक आर्ट हाउस है। हम सब जगहों को नहीं देख पाए। नाटक क्यूब नामक सभागार में था। हम उसके इर्द-गिर्द ही रहे। मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर सभागार तक मुस्कुराता हुआ स्टाफ मौजूद है जो बढ़-चढ़कर आपकी मदद करता है।
मुंबई में ऐसा एक बड़ा केंद्र एनसीपीए यानी नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स है जिसे टाटा और जमशेद भावा ने पचास साल पहले बनवाया था। उसमें भी कई सभागार हैं। उनकी अपनी भव्यता और सौंदर्य है। वह पिछले 50 वर्षों से एक बड़ा और देदीप्यमान सांस्कृतिक केंद्र रहा है। उसकी वास्तुकला अपने जमाने की है। वह तब अधुनातन ही दिखता था। उस परिसर में टाटा और भावा थिएटर की भव्यता आज भी देखते ही बनती है। एक्सपेरिमेंटल थियेटर की सादगी के बावजूद उसकी एक क्लास तो है ही।
अब बीकेसी यानी बांद्रा कुर्ला कंपलेक्स में यह नया केंद्र बना है। उप नगरों में सांस्कृतिक गतिविधि के केंद्रों की बहुत ज्यादा जरूरत है। इस केंद्र की वास्तुकला आज के समय की है- विराट, भव्य, रोशन, चमचमाती। एनसीपीए कॉलोनियल छाया के साथ आधुनिक वास्तु रचना थी। एनएमएसीसी यानी नीता मुकेश अंबानी कल्चरल सेंटर उत्तर आधुनिक भव्यता से ओतप्रोत है। अब यहां नियमित गतिविधियां होने लगी हैं- संगीत, नाटक, नृत्य, सभी तरह की। पिछले दिनों यहां विश्व प्रसिद्ध नाटक साउंड ऑफ म्यूजिक के शो हुए। परिचय फिल्म इसी पर आधारित थी। यहां इसके टिकट एक हजार से तीस हजार तक में बिके। ऐसा इंप्रेशन था कि यह बहुत मंहगी जगह है। मराठी नाटक का टिकट तीन सौ से शुरु हो रहा है। हमने जो नाटक देखा उसका टिकट दो सौ पचास में आया था। पृथ्वी में भी नाटक की कीमत अब काफी ज्यादा है। पूर्वा नरेश के नाटक का टिकट सात सौ में है। पृथ्वी में चाय नाश्ता भी सस्ता नहीं है। वह तो हर सांस्कृतिक केंद्र पर मंहगा ही है। यह मानना ही होगा कि नाटक देखना महंगा शौक है। यूं फिल्म देखने में भी काफी पैसा लगता है पर उसकी तुलना नाटक से नहीं की जाती। नाटक को हम मुफ्त में या सस्ते में देखना चाहते हैं।


ढूंढो हर शानदार चीज़ दुनिया में


हम लोगों ने एक अंग्रेजी नाटक देखा। एवरी ब्रिलियंट थिंग। यह डंकन मैकमिलन और जॉनी डोनाहो का अंग्रेजी नाटक है। इसमें एक ऐसा व्यक्ति अपने अनुभव साझा करता है जिसकी मां डिप्रेशन में थी और आत्महत्या की तरफ झुक जाती थी। इस व्यक्ति ने बचपन से ही अपनी मां को इस तरह की उदासी में झूलते देखा है। मृत्यु से उसका पहला सामना अपने कुत्ते की बीमारी के वक्त होता है जब डॉक्टर उसे बिना दर्द मरने की दवा देता है। बच्चा मां को डिप्रेशन से बाहर लाने के लिए आसपास की खूबसूरत चीजों की सूची बनाता है। यह सूची वह ताउम्र बनाता रहता है। इसमें धीरे-धीरे एक लाख प्रविष्ठियां जमा हो जाती हैं। इस सूची में आइसक्रीम, चॉकलेट, पिलो फाइट जैसी चीजें है तो कविता, पुस्तक और नाटक जैसी भी। असल में एक लाख चीजों की सूची में कुछ भी शामिल हो सकता है जिससे खुशी मिलती हो। मकसद है जिंदगी से प्रेम करना। बच्चा इसी जद्दोजहद में बड़ा होता है। कॉलेज जाता है। प्रेम करता है। प्रेमिका की पहल पर शादी करता है। खुद भी डिप्रेशन में डूबने लगता है। उससे बाहर भी निकल आता है। पर मां को नहीं बचा पाता।

हंसते खेलते हुए आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसे पेचीदा और संजीदा विषय के गिर्द एक घंटे का यह नाटक रोचकता से बुना गया है। इसमें एक ही पात्र है। अपनी सूची में से बहुत सी पर्चियां वह दर्शकों में नाटक शुरू होने से पहले ही बांट देता है। नाटक के दौरान नंबर बोलता है और उस नंबर की पर्ची जिस दर्शक के पास है वह उस पर्ची को पढ़ता है। इस तरह के खेल से विषय की गहराई, जिंदगी में खुशी ढूंढ़ने की व्यापकता तो आती ही है, नाटक में रोचकता भी बनी रहती है। दर्शकों में से ही वह अन्य पात्र चुनता है जैसे डॉक्टर, पिता, शिक्षिका, प्रेमिका आदि। उन्हें भूमिका निभाने को प्रेरित करता है। वे लोग रोल प्ले कर भी लेते हैं। हालांकि उन्हें अचानक इस नाटक का हिस्सा बनना पड़ता है जिस वजह से एक झिझक, हड़बड़ाहट, और अनघड़पन की स्थिति वहां मौजूद हो जाती है। ऐसे स्थिति में पैदा होने वाली झेंप को लोग मुस्कुराहट और हंसी से दबाने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन मुख्य पात्र अपनी इंप्रोवाइजेशन से स्थितियां निर्मित कर लेता है। और दर्शकों की भूमिकाएं सभी को लुभाने लगती हैं।
क्यूब नाम के छोटे से सभागार में जहां यह नाटक खेला गया चारों तरफ दर्शक बैठे थे। बीच में अभिनय हो रहा था। मुख्य पात्र दर्शकों में घुल मिल जाता है। चूंकि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ अम्मा की कहानी सुना रहा है इसलिए सभी दर्शक उससे जुड़े हुए रहते हैं।

यह नाटक क्यूटीपी कंपनी ने तैयार किया है। क़ासर ठाकुर पदमसी ने भारतीय परिवेश में ढालकर इसे निर्देशित किया है। हालांकि संगीत और पुराने गीतों के रिकॉर्ड अंग्रेजी के ही हैं। चूंकि नाटक अंग्रेजी में खेला गया शायद इसलिए गीत भी उन्होंने अंग्रेजी फिल्मों के ही रखे हैं। बेंगलुरु के अभिनेता विवेक मदन ने इसमें एक मात्र अदाकार की भूमिका निभाई है।
नाटक को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता से जोड़ते हुए प्रदर्शन के बाद इच्छुक व्यक्तियों के लिए काउंसलिंग सत्र भी रखा गया था। इस तरह इसे थैरेप्यूटिक या उपचारात्मक थिएटर भी कहा जा सकता है, मगर दिलचस्प और गंभीर।




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