हम सबके प्यारे सुरेंद्र राजन ने यह चित्र फेसबुक पर साझा किया।
उस पर मेरी तात्कालिक प्रतिक्रिया
ललाट पर लपट धारे
यह कौन है
यह कौन है
साधु का बाना है
देह नहीं
देह नहीं
चेहरा कहीं को है
दृष्टि कहीं और
दृष्टि कहीं और
लगता स्थिर है
पर चलाएमान है
पर चलाएमान है
कल कहीं बैठा था
कल कहीं उतरेगा
कल कहीं उतरेगा
खुले में भी है
ओट में भी
ओट में भी
रोशनी की कंदरा है
किसका जागना
किसकी तंद्रा है
किसका जागना
किसकी तंद्रा है
No comments:
Post a Comment