हृदयेश जी को विनम्र श्रद्धांजलि
कई बरस पहले हृदयेश जी जब मुंबई आए थे, जीतेंद्र भाटिया और सुधा अरोड़ा ने अपनी वसुंधरा में उनका कहानी पाठ रखा था। गोष्ठी के बाद मैंने एक कविता लिखी, जो हृदयेश जी को समर्पित की। उन्हें भेजी और उनका आशीर्वाद भी मिला। उनकी याद में यहां यह कविता रख रहा हूं। यह कविता कवि की दुनिया श्रृंखला में लिखी कविताओं में पहली कविता है।
छोटी सी सहित्य सभा
(हृदयेश जी के लिए)
छोटी सी सहित्य सभा थी
छोटी सी जगह
छोटे छोटे लोग
छोटी सी जगह
छोटे छोटे लोग
एक कथाकार था सीधा सच्चा
दुनिया जहान उसने पतह नहीं किया था
अपनी धुन का पक्का था
दुनिया जहान उसने पतह नहीं किया था
अपनी धुन का पक्का था
कथा वांची खुद के जैसी सीधी सरल
थोड़ी ठोस थोड़ी तरल
थोड़ी ठोस थोड़ी तरल
एक रचनाकार ने बहस चलाई
बीज शब्द उठाया आजादी
बोला आजादी जब वाक्य में पिरोकर
आंख उसकी लरज गई
चेहरे ने दी बेमालूम जुंबिश
आवाज भी औचक थरथराई जरा सी
किसी की नजर में किसी के सुनने में अनायास आई
बीज शब्द उठाया आजादी
बोला आजादी जब वाक्य में पिरोकर
आंख उसकी लरज गई
चेहरे ने दी बेमालूम जुंबिश
आवाज भी औचक थरथराई जरा सी
किसी की नजर में किसी के सुनने में अनायास आई
वाह! एक शब्द में समाई क्या बिल्लौरी समीक्षा थी
थोड़ी ठोस थोड़ी तरल
थोड़ी ठोस थोड़ी तरल
छोटी सी सहित्य सभा थी
छोटी सी जगह
छोटे छोटे लोग
छोटी सी जगह
छोटे छोटे लोग
बड़ी सी सभा होती
बड़ी सी जगह में
छोटे छोटे लोगों की बेमालूम ये बात
नामालूम कहां तलक जाती।
बड़ी सी जगह में
छोटे छोटे लोगों की बेमालूम ये बात
नामालूम कहां तलक जाती।
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