रमाकांत कहानी पुरस्कार से सम्मानित कहानी दुश्मन मेमना और पुरस्कार के बारे में जानकारी के बाद अब पढ़िए इस कहानी के निर्णायक दिनेश खन्ना का वक्तव्य
ओमा शर्मा की कहानी 'दुश्मन मेमना'
मुझे एकदम आज की कहानी लगी. आज से मेरा मतलब है हमारे आज के शहर, महानगर में
रहते-बसते मध्यवर्गीय परिवार में घटित होता यथार्थ. आज के युवाओं और अपने बच्चे
के भविष्य को लेकर थोड़ा ज्यादा चिंतित और सचेत रहने वाले माता पिता खासतौर पर
मां-बाप और उनकी इकलौती संतान. एक पंद्रह-सोलह साल की लड़की, नए जमाने के संचार
माध्यम – फेसबुक और मॉडर्न गैजेट्स जैसा खिलौना. जो उसे जान से प्यारा
हो जाए, तब क्या होगा!
पेरेंट्स की चिंताएं और लड़की की हर
तरह की जिद... कहानी इन तमाम चीजों के साथ मनोवैज्ञानिक जटिलता के बीच आ खड़ी होती
है. फिर माता-पिता अपनी बेटी के लिए भावनात्मक दबाव महसूस करने लगते हैं. बेटी का
लगभग ब्लैकमेलिंग जैसा व्यवहार और उनके बीच मनाचिकित्सकों के लंबे सवाल-जवाब का
सिलसिला कहानी को आकार देता है.
कहानी दिलचस्प और गंभीर विषय के साथ,
कई ढंकी-छिपी मनोवैज्ञानिक परतें खालती है. और फिर शिल्प, कलात्मकता और विषय की
दृष्टि से भी कहानी अनोखी बन पड़ी है. कहानी पढ़ने के बाद बराबर याद रहती है. और
मन में कहीं एक अनसुलझा प्रश्न छोड़ जाती है.
कहना जरूरी है कि अपने कथारस और
ताजगी भरी भाषा के चलते मुझे रमाकांत कहानी पुरस्कार के लिए यह रचना सर्वथा
उपयुक्त लगी.
इस बारे में जानकारी यहां भी है.
इस बारे में जानकारी यहां भी है.
हां ऐसे हालात तो आजकल हैं ही। इस पर कहानी लिखकर लिखनेवाले ने परिस्थिति चैतन्यता का परिचय दिया है।
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