Sunday, June 29, 2014

स्टेट ऑफ होमलैंड

सलमान मासाल्‍हा की कविताएं
                                            छायांकन: हरबीर

  
भ्रूणहत्‍या
मैं जन्‍मा था गलियों की बालू में
मेरा हाथ था एक चौडा़ पाल
मैं एक अंधड़ था।
पेवमेंट एक पतझड़ थी
जो मेरे पैरों के नीचे ताक रही थी
आंखों और गीत या कहानी के वास्‍ते
बहुत से पैरों की पदचाप के कारण
और हवा के कारण मैं उठता हूं धूल की तरह
गली के नुक्‍कड़ पर।
मेरा जख्‍म खिलता है चैराहों पर
सभ्‍यता की पीप रिसती है
सुलगाता हूं सिगरेट शोरोगुल में
लिए चलता हूं इसकी खाली टोकरी
और गिरता हूं
पर वह है रसातल

2 comments:

  1. कवि ने भ्रूण ह्त्या पर जो चोट की है उसकी टंकार ह्रदय को द्रवित कर देती है। पर हत्यारों के कानों की दीवारों को नहीं भेद पायेगी। वो लोग कविता पाठ नहीं करते।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अच्छी खबरें आती है...तभी अच्छे दिन आते है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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