इच्छा दब ही नहीं, शायद मर भी गई थी। एनसीपीए के फिल्म सेंटर की सदस्यता का
नवीनीकरण तो करवा लिया था, पर देखने जाने की इच्छा नहीं होती
थी। प्रभात चित्र मंडल की सदस्यता लेकर फिल्में देखने का ख्याल भी करने की हिम्मत नहीं
होती थी। बचते चले जाने की मानसिकता बन गई थी।
इस बार श्याम बेनेगल की सारी फिल्में दिखाई जाने लगीं
तो उत्सव के दूसरे दिन अचानक जोश आ गया और साल भर की सदस्यता ले ली। इतना ही नहीं, जुलाई महीने की चार फिल्में भी देख
डालीं। यह अनुभव अच्छा रहा। फिल्में देखीं, चरणदास चोर,
निशांत, मंथन और भूमिका।
श्याम बेनेगल अपने माध्यम के मास्टर हैं। हर फिल्म अपने
आप में संपूर्ण है। उद्वेलित करती है। चरणदास चोर काफी हद तक हबीव तनवीर के नाटक पर
आधारित है। संगीत वही है, कलाकार
वहीं हैं। पर कल्पना की उड़ान नाटक से कहीं ज्यादा है। खूब खेलते हैं और मानव स्वभाव पर अनजाने
में टिप्पणियां करते चले जाते हैं।
निशांत सामंती दरिंदगी को तहस नहस करने की शुरूआत करने
की फिल्म है। नायक की पत्नी का जमींदार के बेटों द्वारा उठा लिया जाना, नायक की लाचारी और फिर धीरे धीरे
शोषित लोगों को इकट्ठा करना और बदला लेना। हालांकि यह लगा कि पीड़ा, दुख-तकलीफ दरिंदगी का चित्रण जितना
सघन और सजीव है, परिवर्तन की शक्तियों को इकट्ठा करने के प्रयासों
का चित्रण संकेतात्मक है। उसकी तैयारी जो वास्तव में कहीं बहुत दुष्कर कार्य है,
लगभग असाध्य, वह गुपचुप होता चला जाता है
और एक छोटी सी क्रांति भी हो जाती है। संघर्ष की इस तैयारी की भीतरी दुनिया या नजदीक से, माइक्रोस्कोपिक
स्टडी उसमें नहीं दिखती।
मंथन सहकारिता आंदोलन पर बड़ी कलात्मक और श्रेष्ठ फिल्म है।
इस तरह के राजनीतिक विषय पर एक कलाकृति तैयार करना एक बड़ी प्रतिभा के दर्शन करवा देता
है। समाज की भीतरी तहें बहुत साफ हो के सामने
आती हैं।
भूमिका बहुत तनाव देने वाली फिल्म है। हमारे समाज में
स्त्री कलाकारों की जो हालत रही है,
पुरुष वर्चस्व में वे जिस तरह जकड़ी रहती हैं, उसका बहुत सटीक और मार्मिक चित्रण इसमें है। कला-संस्कृति समाज और स्त्री
की व्याख्या संपूर्ण गंभीरता से की गई है। स्त्री को स्त्री होना ही नसीब नहीं है।
वह अंत तक भटकती रहती है। उसकी किस्मत में अंतत: अकेलापन ही है।
22-7-98
अच्चा है, लेकिन इतने से मेरा क्या होगा . विस्तार से लिख सकते हैं एक एक पर. चरण दास चोर को छोड़ कर बाक़ी तीन मैने भी देखी हैं .
ReplyDeleteअच्चा है, लेकिन इतने से मेरा क्या होगा . विस्तार से लिख सकते हैं एक एक पर. चरण दास चोर को छोड़ कर बाक़ी तीन मैने भी देखी हैं .
ReplyDeleteयह तो बहुत अच्छा है कि आपने भी इनमें से तीन फिल्में देखीं हैं. आप ही बात आगे बढ़ाइए न.
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