पन मैं क्या बोलती है, मेरे को तुम सब लोक ने मिल के तड़ी पार किएला है. मालुम नई मै कब से खड़ी है. कचरे के अंदर खड़ी है. मेरा पूछ पकड़ के तुम लोग वैतरणी पार करता है. पढ़ता लिखता है. खाता पीता है. फिर मेरे को छिनाल बोलता है. फिर पालिटिस करता है. मेरी आत्मा के ऊपर बुलडोजर घुमा दिया रे तुम लोग. जालिम लोग.
अब मेरा बात ध्यान से सुन. मेरे को ले के चल. पीठ के ऊपर ज्ञान को रखने का नहीं. उसको माथा से छुवा बेवकूफ. ज्ञान के ऊपर बैठने का नई. ज्ञान ढोके में भरने का. ढोका मंझे दमाग. फिर मेरे को वर्धा ले के जा. मैं उधर अपनी राय देगी. बोलेगी, तू अभी गांधी बाबा के पास जा के राम राम बोल और चरखा कात. बहुत हो गया तेरा नाटक.
सुन, फिर मेरे को मेरे इच लोग के बीच ले के जा. सच्ची बोलती रे. तेरे को बहोत आशीर्वाद देगी मैं. तू इतना पोथी लिखता है. मगजमारी करता है. पोथी को वाचनालय में बेच देता है. कौन पढ़ता है तेरा ज्ञान का बात. दिल पर हाथ रख के बोल. इसी वास्ते बोलती, मेरे को नगर नगर, गांव गांव गल्ली गल्ली ले के चल. मैं हिंदी बोलती. तेरी माई बोलती मैं.
गोवर्धन दास
अब इस राय(ई) का पहाड़ ही बना दे रहे हो आप लोग तो
ReplyDelete