Thursday, July 1, 2010

भूख

मेरी पिराबलम बोले तो मालूम क्या है? अक्खा दिन मेरे कू कागज खाना पड़ता है। काए कू ? बोले तो सड़क पर घास नहीं उगता है इसी के वास्‍ते। अब तुम यह पूछेगा कि कागज जास्ती खाती है कि पिलास्टिक, तो बताना जरा मुसकिल गिरेगावो इस वास्‍ते कि जभी भूख लगी हो तभी जो भी मिल जाए, खाना ई च पड़ता है। तू बोल, दिल पे हाथ रख के बोल, भूख लगने पर खाता है कि खाने का टेम हो गएला है, इसके वास्ते खाता है। दूसरा बात भी है रे। भूख लगने पर तेरे पास चॉइस है क्या? यह खाएंगा वो नहीं खाएंगा? कि खाना ई च नईं है? बहोत लोक है हमारे महान मुलुक में, जिनको एक टैम भी खाना नसीब नहीं होता। पर जाने दे। मैं तो गाई माई है। हज्‍जार साल से सब लोक मेरी पूजा करते। मैं ई कागज और पिलास्टिक खाती है तो दूसरे के बारे में क्या बोलेगी।

5 comments:

  1. Bahut badhiya Anup ji. Bahaane se aap ne jo vyangya kiya hai bahut maarak hai.

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  2. नमस्‍कार। सुन्‍दर रचना।

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  3. सच पूछो तो मेरा ध्यान "मुस्किल गिरेगा" ने खींचा. हिन्दी मे यह "पड़ेगा" है. गिरना और पड़ना का पुरातन रिश्ता स्पष्ट होता है.

    यह पढ़ कर मुझे ध्यान आया कि मुझे भी हमेशा ठीक 1:30 पर लंच करने का "विचार्" आता है. जब कि "भूख" आगे पीछे जब कभी लग जाती है. मालोम हुआ कि क्यों मिलारेपा ने विचार को दुख का कारण बताया....

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  4. इनको शेक्सपियर का नाटक दिखाइए. कमाल होगा, जैसा की आज के समाचारपत्र से मुझे सूचना मिली.

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