कवि की दुनिया
दुनिया में कवि से ज्यादा उजड्ड कोई नहीं
कवि से ज्यादा सभ्य कोई नहीं
तमाम दुनिया पानी भरती है कवि के आगे
इशारों पर नचाता फिरता है दिन रात
दुनिया की ऐसी तैसी करता रहता है कवि
दुनिया अपनी दुनिया में मगन हो दूसरी किसी दुनिया में निकल जाती
कवि एक एक डग से नापता एक एक लोक
कवि दुनिया की दुनिया और दूसरी अनेकानेक दुनियाओं में विचरता
अपनी एक दुनिया रच डालता रोज रोज
कोई देखे कवि की दुनिया से
कैसी दिखती है मेरी तुम्हारी दुनिया ªयह कविता सन 2001 में लिखी थी और पिछले साल वागर्थ में छपी थी.
उदय प्रकाश कवि नही रहे, कथाकार हो गये हैं. और चिट्ठाकार. एक नई कविता लिख दीजिए.
ReplyDeleteab to ve ek hatyare yogi ki chilam bhar rahe hain
ReplyDeleteअनूपजी कवियों कि सटीक और सुंदर परिभाषा के लिए धन्यवाद . बहुत ही सटीक. दिल को छु लेने वाली . सही मायने में कवियों के चरित्र को उजागर करने वाली कविता . कम -से -कम मुझे तो ऐसा ही महसूस हुआ
ReplyDeleteप्रिय अजेय, जिद्दी धुन और संवाद प्रिय बंधु,
ReplyDeleteयह कविता तो प्रसंगत: उदय जी पर है. वैसे कोई कवि इससे अछूता नहीं है. मेरे ख्याल से किसी के किए को सामने रखकर पंची तो डाली जा सकती है, जो या तो सत्त निचोड़ के हथेली पे धर दे या छीछालेदर कर दे, पर कविता? कविता इतनी आसानी से नहीं लिखी जा सकती. पालियों को जोड़ घटा के करतब करना हो तो अलग बात है.
चित्र कार्तिकेय की मूर्ति का जान पड़ता है. सुंदर कलाकृति.
ReplyDeleteराहुल जी, यहां पधारने और टिप्पणी करने के लिए आभार.
ReplyDeleteशायद.
मोर तो दिख रहा है.
यह मूर्ति हिमाचल के कांगड़ा जिले के मसरूर में शैल खनित हिंदू मंदिरों के समूह में है.