किसी दिन अचानक
सुबह, शाम या रात में
आंखों के सामने आ खड़ा हो आसमान
भुरभुरी धुंध, बादल पहाड़ी पर चढ़ आएं
स्लेट की छतों को ढक लें धीरे धीरे
चीड़ की नुकीली पत्तियां एक एक बूंद को थामे रहें
किसी दिन अचानक
सुबह, शाम या रात में
खिड़की ज़रा सा पर्दे को हिलाकर
कुर्सी पर आ बिराजे
आंखों के सामने आसमान
व्यस्त लोगों के कंधे झकझोर के पूछूं
देखा तुमने दूधिया था आसमान
बूंद दो बूंद गिरेंगी
कम हो जाए बंबई में गर्मी शायद
ट्रेनें तो पर चल रही हैं नियमित
चिकनी ढीठ अरब की खाड़ी
जाओ तुम भी लादो उतारो जहाज़
छाती पर व्यापारियों का बोझ ढोना ही बदा है
मुझे तो छुट्टी दे दो आज
आसमान से संवाद कर लूं
आविदा परवीन को सुन लूं
धुंध के रेशों से सवा दो अक्षर की कहानी बुन लूं
विजय कुमार की कविताएं पढ़ लूं
अदृश्य हो जाएंगी सूखी पत्तियां
सुबह, शाम या रात में
आंखों के सामने आ खड़ा हो आसमान
भुरभुरी धुंध, बादल पहाड़ी पर चढ़ आएं
स्लेट की छतों को ढक लें धीरे धीरे
चीड़ की नुकीली पत्तियां एक एक बूंद को थामे रहें
किसी दिन अचानक
सुबह, शाम या रात में
खिड़की ज़रा सा पर्दे को हिलाकर
कुर्सी पर आ बिराजे
आंखों के सामने आसमान
व्यस्त लोगों के कंधे झकझोर के पूछूं
देखा तुमने दूधिया था आसमान
बूंद दो बूंद गिरेंगी
कम हो जाए बंबई में गर्मी शायद
ट्रेनें तो पर चल रही हैं नियमित
चिकनी ढीठ अरब की खाड़ी
जाओ तुम भी लादो उतारो जहाज़
छाती पर व्यापारियों का बोझ ढोना ही बदा है
मुझे तो छुट्टी दे दो आज
आसमान से संवाद कर लूं
आविदा परवीन को सुन लूं
धुंध के रेशों से सवा दो अक्षर की कहानी बुन लूं
विजय कुमार की कविताएं पढ़ लूं
अदृश्य हो जाएंगी सूखी पत्तियां
अनूप सेठी जी की इस बेहतरीन रचना को पढवाने का आभार.
ReplyDeleteBhai Anup ji ka is sunder kavita ke liye abhaar.
ReplyDeletenavneet.
is kavita me dam hai.......
ReplyDeleteदेख रहा था कि मेरे ब्लॉग की पहली पोस्ट क्या थी। सन 2008 दिसंबर में यह कविता लगी थी। यह शायद भाई प्रकाश बादल ने लगाई थी। ब्लॉग बनाया भी उन्होंने ही था। बारह साल हो गए। और नब्बे हजार हिट्स। इतना बुरा भी नहीं है।
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