उन्होंने बहुत सी चीज़ें बनाईं
और उनका उपयोग सिखाया
उन्होंने बहुत सी और चीज़ें बनाईं दिलफरेब और उनका उपभोग सिखाया
उन्होंने हमारा तन मन धन ढाला अपने सांचों में
और हमने लुटाया सर्वस्व
जो हमारे घरों में और समाया हमारे भीतर
जाने किस कूबत से हमने
उसे कबाड़ की तरह फेंकना सीखा
कबाड़ी उसे बेच आए मेहनताना लेकर
उन्होंने उसे फिर फिर दिया नया रूप रंग गंध और स्वाद
हमने फिर फिर लुटाया सर्वस्व
और फिर फिर फेंका कबाड़
इस कारोबार ने दुनिया को फाड़ा भीतर से फांक फांक
बाहर से सिल दिया गेंद की तरह
ठसाठस कबाड़ भरा विस्फोटक है
अंतरिक्ष में लटका हुआ पृथ्वी का नीला संतरा
और उनका उपयोग सिखाया
उन्होंने बहुत सी और चीज़ें बनाईं दिलफरेब और उनका उपभोग सिखाया
उन्होंने हमारा तन मन धन ढाला अपने सांचों में
और हमने लुटाया सर्वस्व
जो हमारे घरों में और समाया हमारे भीतर
जाने किस कूबत से हमने
उसे कबाड़ की तरह फेंकना सीखा
कबाड़ी उसे बेच आए मेहनताना लेकर
उन्होंने उसे फिर फिर दिया नया रूप रंग गंध और स्वाद
हमने फिर फिर लुटाया सर्वस्व
और फिर फिर फेंका कबाड़
इस कारोबार ने दुनिया को फाड़ा भीतर से फांक फांक
बाहर से सिल दिया गेंद की तरह
ठसाठस कबाड़ भरा विस्फोटक है
अंतरिक्ष में लटका हुआ पृथ्वी का नीला संतरा
kयह उपभोक्तावाद हमे विनाश की और ले जा रहा है। एक जमाना था जब पिछवाडे मे एक तुल्सी का पौधा होता और रसोई मे काली मिर्च। खांसी हुई तो काढा बना कर स्वस्थ हो जाते थे। आज बजार मे सैकडो किसीम की कफ सिरप है। आज शक्ति सम्पन्न राष्ट्र रुप, रंग, गन्ध, स्पर्श सुख देने के लिए नित नए उत्पाद बना रही है। प्रकृति का अत्याधिक दोहन हो रहा है। प्रकृति इसे ज्यादा समय बर्दास्त नही कर सकती..... हम प्रलय की और बढ रहे है। लेकिन उसके बाद फिर सत्युग भी है। शायद यही सृष्टी का नियम है।
ReplyDeleteशायद आप ठीक वही अनुभव कर रहे है जो मै कर रहा हुं। लेकिन यह बात खुद समझ म आए तो ठीक है लेकिन किसी को समझाना कठीन ही नही दुस्साहस्पुर्ण भी है।
ReplyDeleteदेखे, शायद आपको अपनी तरह सोचने वाला एक दोस्त नजर आए : --
http://himwant.blogspot.com/2008/09/blog-post_09.html
ठसाठस कबाड़ भरा विस्फोटक है
ReplyDeleteअंतरिक्ष में लटका हुआ पृथ्वी का नीला संतरा
कबाड़ के माध्यम से अच्छा व्यंग्य किया है आपने पश्चिम के अन्धानुशरण और उपभोक्तावाद पर. शुभकामनाएं और स्वागत अपनी विरासत को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.
(Pls remove unnecessary word verification).
अर्थ और भोग में लिप्त ये दुनिया
ReplyDeleteइंसान को कहाँ ले जायेगी
यकीनन कोई ब्लास्ट होगा
पृथ्वी अन्तरिक्ष से लुप्त हो जायेगी
पर हमारी लालसा
क्या लुप्त हो पायेगी ?
Antarmukhee banane waalee ek rachana hai..!Aapka shubhkamnayon sahit yahanpe swagat hai !
ReplyDeleteMaine apne blogpe apne manke dwarko halka-sa khol jhnakna shuru kiya hai...aapbhe dekh jayen to badee khushee hogee !
अच्छा बहुत बढिया
ReplyDeleteब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
ReplyDelete---
आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)