Monday, January 14, 2019

युद्ध और शांति



तिब्‍बती कवि लासंग शेरिंग  से कुछ साल पहले धर्मशाला मैक्‍लोडगंज में भेंट हुई थी। तिब्‍बत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाला कवि मैक्‍लोडगंज में बुुक वर्म नाम की किताबों की दुकान चला कर अपना जीवन चलाता है और अपने मुल्‍क की आजादी के ख्‍वाब देखता है। लासंग की चार कविताएं यहां बारी बारी से दी जा रही हैं। ये चार कविताएं कवि ने बुक मार्क की तरह छाप रखी थीं जो उसकी किताबों की दुकान पर पाठक ग्राहकों को सहज ही उपलब्‍ध थीं। इनमें से सबसे पहले आपने पढ़ी भस्‍म होता बांस का पर्दा, उसके बाद जब दर्द ही सुख हो। अब पढ़िए यह कविता- 




युद्ध और शांति
युगों पहले हमारे पुराने बादशाहों ने छोड़ दी
हमले और फतह के वास्‍ते जंग
सत्‍ता और बदला लेने के वास्‍ते जंग
मशहूरी और तकदीर बनाने को जंग
विदेशी नीति के तौर पे जंग

आज हम जंग के ही मारे हैं
हमले और विस्‍तारवाद के जंग
दमन और उपनिवेशवाद के जंग
साम्‍यवाद फैलाने को धर्म के खिलाफ जंग

फिर भी हमें यकीन है कि गलत नहीं था
हम सच में तैयार नहीं थे जंग के लिए
हम बेशक अमन से बंधे थे
वो आतंकवादी है जो नहीं था सही
वो हमलावर है जो गलत है

हमें है अमन पर भरोसा कष्‍ट से तपे हुए हम
हमें अभी भी है यकीन अमनपसंद तरीकों पर
हमें अभी भी है यकीन बेहतर पड़ोस पर
हमें अभी भी है यकीन हमारे पुराने बादशाह सही थे
हमें अभी भी है यकीन बुद्ध की विदेश नीति पर

फिर भी कुछ चीजें है जो मैं नहीं कर सकता
मैं इंतजार नहीं कर सकता जब तब दुनिया मदद का फैसला करे
मैं आत्‍मसमर्पण नहीं कर सकता क्‍योंकि मेरा दुश्‍मन ताकतवर है
मैं मौत का सामना नहीं कर सकता दिल में अफसोस लिए
नहीं, मैं हार नहीं मान सकता मैं लड़ता रहूंगा

कई चीजें हैं मैं देख नहीं सकता
मेरे विश्‍वास मेरी संस्‍कृति को ठुकरा दिया नेस्‍तनाबूद कर दिया
मेरे देश को लूटा चूसा और तबाह कर दिया
मेरे देश को गुलाम बनाया और जातीय अल्‍पसंख्‍यक बना के छोड़ा
नहीं, मैं नहीं देख सकता बेगाने मेरे वतन पर राज करें



2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 15/01/2019 की बुलेटिन, " ७१ वें सेना दिवस पर भारतीय सेना को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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