Thursday, May 29, 2014

लिखने वाले अच्‍छे ब्रशों के बारे में


यह प्राचीन चीनी कवि बाई जुई की कविता है जिसका रचना काल 809 ईस्‍वी है। एक पोस्‍ट पहले आपने सुलेखन पर एक लेख पढ़ा होगा। यह कविता उसी लेख के साथ विकास प्रभा में छपी थी। लिखने का साधन ब्रश हो, कलम हो, पेन हो या इंटरनेट के जमाने में कीपैड, बाई जुई की यह कविता आज भी प्रासंगिक है। 


लिखने वाले ब्रश बनते हैं पशुओं के फर से
सुओं की तरह नुकीले, चाकुओं की तरह पैने,
जियांग्‍नेन की चट्टानों में छिपे हुए खरगोश
बांस और चश्‍मों के पानी पर जिंदा रहते हैं
लोग पकड़ते हैं उन्‍हें जुंआग्‍चेंग में
और फर की हजारों लटों में से चुनते हैं एक लट
बनाने के लिए खास किस्‍म का ब्रश ।
ब्रश होते हैं हालांकि हल्‍के
बनते हैं कचहरियों के वासते
सम्राट या मंत्री न करें
उनका लापरवाह इसतेमाल ।
बेहतर हो आचोचक या इतिहासकार
इन ब्रशों से भंडा फोड़ें दुर्जनों का
या लिखें हाल फिलहाल की घटनाएं ।
आलोचकों और इतिहासकारों के लिए
खरे सोने की तरह हों ये ब्रश
न हो इस्‍तेमाल इनका
मामूली कमियों की नुक्‍ताचीनी में
न ही तुच्‍छ हिदायतों के मूढ़ खोखले शब्‍दों के
अभिलेख बनाने में ।

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