दोनों ही लाजवाब....नीरज
बहुत खूब भई ।
लट के लटके झटके ऐसे ही होते हैं।बढ़िया है।
बहुत ही सुंदर स्केच हैं। कहूं तो दोनों के एक साथ होने पर ही एक काव्यात्मक थीम बन रही है। क्या ये बाल ही हैं जो डरा-दबा और चुप्पा बना देते हैं ? और बिना बालों के कैसे तो रोबिलापन दिखने लगता है।
अद्भुत !
कभी हम भी ऐसे ही इतराते थे!पर ऐसे तो नहीं!
बढ़िया
क्या बात है अनूपजी! मैं बाल की खाल नहीं निकालना चाहता लेकिन दूर की कौड़ी लाए हैं आप! और लट का खेल अभी भी जारी है... भगवान आपकी लटों को सलामत रखे!
accha , to pagri k bhitar do tarha k sir ho sakte hain.
दोनों ही लाजवाब....
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब भई ।
ReplyDeleteलट के लटके झटके ऐसे ही होते हैं।
ReplyDeleteबढ़िया है।
बहुत ही सुंदर स्केच हैं। कहूं तो दोनों के एक साथ होने पर ही एक काव्यात्मक थीम बन रही है। क्या ये बाल ही हैं जो डरा-दबा और चुप्पा बना देते हैं ? और बिना बालों के कैसे तो रोबिलापन दिखने लगता है।
ReplyDeleteअद्भुत !
ReplyDeleteकभी हम भी ऐसे ही इतराते थे!
ReplyDeleteपर ऐसे तो नहीं!
बढ़िया
ReplyDeleteक्या बात है अनूपजी! मैं बाल की खाल नहीं निकालना चाहता लेकिन दूर की कौड़ी लाए हैं आप! और लट का खेल अभी भी जारी है... भगवान आपकी लटों को सलामत रखे!
ReplyDeleteaccha , to pagri k bhitar do tarha k sir ho sakte hain.
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