Wednesday, March 18, 2009

बाल वाला और बिना बाल वाला










9 comments:

  1. दोनों ही लाजवाब....
    नीरज

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  2. बहुत खूब भई ।

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  3. लट के लटके झटके ऐसे ही होते हैं।

    बढ़िया है।

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  4. बहुत ही सुंदर स्केच हैं। कहूं तो दोनों के एक साथ होने पर ही एक काव्यात्मक थीम बन रही है। क्या ये बाल ही हैं जो डरा-दबा और चुप्पा बना देते हैं ? और बिना बालों के कैसे तो रोबिलापन दिखने लगता है।

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  5. कभी हम भी ऐसे ही इतराते थे!
    पर ऐसे तो नहीं!

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  6. क्या बात है अनूपजी! मैं बाल की खाल नहीं निकालना चाहता लेकिन दूर की कौड़ी लाए हैं आप! और लट का खेल अभी भी जारी है... भगवान आपकी लटों को सलामत रखे!

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  7. accha , to pagri k bhitar do tarha k sir ho sakte hain.

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