Monday, May 1, 2017

धोंडी दगड़ू

संजय कुमार 


मजदूर दिवस पर


धोंडी दगड़ू
(मुंबई शहर में 26 जुलाई 2005 को आई बाढ़ के बाद)

हमने उन्हें कोसा
पानी नहीं बिजली नहीं
हम पैदल चलकर आए थे मीलों
बारिश में भीगते हुए
मरकर पहुंचे
ब्रेड तक नहीं
सरकार निकम्मी कुछ करती नहीं

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धोंडी दगड़ू ने कचरा भरा डंपर में चार दिन लगातार
वो तो उसे अभ्यास था गटर में उतरने का
इसलिए भर पाया सड़ा हुआ कचरा
उसने फिर कचरा भरा दस दस बार
फिर फिर भरा

इस बार मरी भैंस को ढोने में लगना पड़ा उसे
दारू पी के उतारा जाता था गटर में
इस बार कौन पूछता है
बोमा बोम करते हैं सब
भूत की तरह लगा रहा धोंडी दगड़ू

इस बार गटर से मरा हुआ मानुस खींचना पड़ा
तब जाकर रास्ता साफ हुआ गंदे पानी का
चूड़ी एक टूटी मरी हुई कलाई में
दगड़ू का हाथ सन गया खून से
जिंदा था खून
दगड़ू के हाथ से निकल रहा था खून

भागता गया मीलों
अपनी खोली की तरफ
खोली कहां?
मैदान था वहां
मज्जा को खुरच के बचे कंकाल सा
जल प्रलय के बाद
किधर गई औरत उसकी
चील बैठी थी पत्थर पर खिलखिलाती
बोली
वो गई पानी के अंदर
खोली के संग
तू जा कचरा संभाल
ड्यूटी बजा

दगड़ू ने पत्थर मारा खींचकर
चील भक्क से फट गई टीवी स्क्रीन की तरह
दगड़ू ने अपने भेजे को हाथ में लिया
और गटर में उतर गया

वहां उसने देखा
डरे हुए से कुछ लोग राशन की लाइन में खड़े थे
कुछ लोग लूट खसोट में लगे थे
कुछ हंस रहे थे राक्षसों की तरह

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आज धोबी मेरी कमीज प्रेस करके ले आया
बाई भी आ गई काम पर
इंतजार में हूं महेश भट्ट की पीआईएल किस करवट बैठती है
शेयर बाजार इन दिनों ऐतिहासिक ऊंचाई पर रहा है
कुछ लोग इस तरह भी सोचते हैं
हजारों करोड़ का नुकसान मतलब लाखों करोड़ का नवनिर्माण

क्या सार यही है कि मैं आखिर सोचूं कि मैं किस तरह बच रहूं
किस तरह बचा लूं अपनी दुनिया?

कहां से शुरू हो कहां पे खत्म हो मेरी दुनिया


कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि हमें शर्म न आए अपने जीने पर? n