अनूप सेठी

Friday, August 13, 2010

मेरे को ले के चल

›
एक मिनट सुन रे बाबा ! तुम लोग हल्‍ला बहुत मचाता है. जब से तेरे हाथ में चूहा आ गएला है , अपना अगाड़ी पिछाड़ी भूल के शेर बन रहेला है. कागज का...
1 comment:
Tuesday, August 10, 2010

असावधान भाषा की सांस्कृतिक ठेस

›
वि‍भूति नाराण राय - ज्ञानोदय विवाद पर प्रसिद्ध चित्रकार और कथाकार प्रभु जोशी का आलेख सुपरिचित कथाकार और सम्प्रति महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्री...
3 comments:
Wednesday, August 4, 2010

तुम कौन सा लोक में है रे

›
मेरी पिराबलम बोले तो मालूम क्या है ? कागज बहोत खाया तो मतलब उसमें बी अखबार ई च बहोत होता है। अखबार तो नाम ही है कि A to Z खबर ही खबर रहें ग...
2 comments:
Friday, July 30, 2010

खामोश! बारि‍श जारी है

›
जो भी मुंबई आता है उसे पहली ही बरसात में प्रेक्टिस हो जाती है कि अगर कहीं फंसे तो कई घंटों तक बुद्ध बनकर यथावत रहने के लिए तैयार रहो। जूते...
8 comments:
‹
›
Home
View web version

Contributors

  • Anup sethi
  • Prakash Badal
  • सुमनिका
  • muditsethi
Powered by Blogger.